क्या कलयुग का अंत निकट है ? Is the end of Kalyug near?

Snehajeet Amrohi
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चार युग है,जिसमें पहला है सतयुग,दूसरा त्रेतायुग,तीसरा द्वापरयुग और चौथा है कलियुग। 

सतयुग- जिसमे केवल सत्य की राह को चुना जाता था, कोई भी अधर्म और पाप अपना शीश उठाने का प्रयास नहीं करता था, हर तरफ बस परोपकार,दयाभाव, प्यार और स्नेह से भरा सतयुग का काल था।लोभ, ईर्ष्या,घृणा, नफरत, अहंकार,क्रोध,स्वार्थ ये सब बुरे विकार और बुरे कर्म सतयुग में वर्जित था। आज इस कलियुग में जहां अपने ही लोग अपने परिवार से ईर्ष्या और नफरत की आग में जल रहे है, वहीं सतयुग में कोई भी मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य से कोई घृणा भाव और नफरत नहीं रखा करते थे, गैर इंसान भी गैरो के साथ अपने परिवार जैसा बर्ताव करते थे,मगर इस कलियुग में कुछ लोग अपनों के साथ ही गैरो सा बर्ताव करते है। 

मगर समय कहां ठहरता है,समय तो आगे बढ़ते ही जाता है, देखते ही देखते सतयुग का काल समाप्त हुआ, फिर आया त्रेतायुग मगर इस युग में भी अधर्म और पाप इतना नहीं बढ़ा था,मनुष्यो में इतनी कुरुरता नहीं समाई थी,मगर असुर जाति कहां शांत से बैठने वाली अपनी कुरुरता का प्रदर्शन तो वो करते ही रहते है,मगर त्रेतायुग में एकमात्र असुरो का ही आतंक बढ़ा जिनका भयंकर अंत हुआ। फिर यूं ही त्रेतायुग की भी समय अवधि समाप्त हुई, उसके बाद आया द्वापरयुग इस युग में आप सभी ने कृष्ण अवतार की अद्भुत लीलाओ का उल्लेख सुना। इस युग में भी कई अधर्मियों का अंत हुआ, कृष्ण की लीलाओ से भरा ये द्वापरयुग भी अपने समय अवधि के साथ समाप्त हुआ जिसके बाद शुरुआत हुई कलियुग की। 

जहां सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग में अपने परिवार के लिए अपने प्राणो को भी न्यौछावर कर दिया करते थे, वहीं इस कलियुग के काल में लोग अपने लालच और स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपनों का ही कत्ल करने में जरा भी संकोच या अफसोस नहीं करते। 

तुम मनुष्य हो कोई भगवान नहीं जो किसी भी जीव की तुम हत्या करोगे, भगवान भी निर्दोष मासूम को कभी नहीं सताते, भगवान किसी भी मनुष्य की जान नहीं लेते, क्योकि जिसकी जितनी आयु है वो अपनी आयु को पूरा करने के पश्चात ही मृत्यु को प्राप्त होता है। 

आज इस धरा पर जो पाप अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर आगे बढ़ रहा है, यकीनन वो अपने अंत के समीप खुद ही पहुंच रहा है, सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग के मनुष्यो ने कभी दानव बनने का प्रयास नहीं किया यदि उनसे कोई भूल हुई तो उस भूल को उन्होंने स्वीकार भी किया और उसके लिए अपनी सजा कबूल किया मगर आज के मनुष्य अपनी भूल को कहां स्वीकार करते है ? बल्कि अपनी भूल और प्रत्येक बुरे कर्मो पर उन्हें खुद पर गर्व होता है, क्योकि उनकी भूल के लिए उन्हें सजा देने वाला अब तक कोई आया नहीं, यही वजह है जो आज इस धरा पर झूठ का बोलबाला है, झूठे लोग राज कर रहे है,धन धान्य से परिपूर्ण है और सच्चे लोग दुख दर्द तकलीफ को सहन कर रहे है, उनके पास ना ही अधिक धन है और ना ही अधिक सम्मान। क्योकि आज इस कलियुग में सम्मान भी वही पा रहा है जो झूठ और अधर्म के मार्ग पर चल कर  खुद के लिए आलिशान महलो का निर्माण करवा रहा तथा महंगी गाड़ियों में घूम रहा,चंद कागज के टुकड़ो से कुछ लोगो को खरीद कर जो अपने लिए बड़े पद और शासन की व्यवस्था करवा रहा। 

जहां सतयुग,त्रेतायुग,और द्वापरयुग में माता-पिता और बड़े भ्राता को ईश्वर तुल्य दर्जा और सम्मान दिया जाता था वहीं इस कलियुग में माता-पिता को ना ही सम्मान दिया जाता है ना ही प्यार, भाई ही भाई को देखना पसंद नहीं करता फिर क्या होगा इसका परिणाम किसी ने सोचा है ?

पति पत्नी एक दूसरे के पूरक माने जाते है,दोनों साथ जीने मरने की कसमे खाते है,हर दुख-सुख में एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते है। सतयुग,त्रेतायुग,द्वापरयुग में जो प्रेम, त्याग और विश्वास जीवित था वो प्रेम त्याग और विश्वास आज इस कलियुग में अब जीवित नहीं रहा। पति के लिए जो समर्पण सेवाभाव और सम्मान एक पत्नी के दिल में होना चाहिए वो इस कलियुग में अब बहुत कम देखने को मिलता है। अपने पति के सिवा किसी पराए पुरुष को देखना भी पाप कहलाता था, आज इस कलियुग में कुछ स्त्रियां अपने स्वार्थ और लालच के लिए अपने पति से धोखा कर किसी पराए पुरुष के साथ अपना सम्पर्क बना रही है,कहीं पर अपनी पत्नी को धोखा दे कर किसी पराई स्त्री के साथ पति अपना रिश्ता जोड़ रहा है। क्या है ये सब ? क्या कोई खेल है ? ये एक पाप है जिसका भुगतान तो एक दिन करना ही है। 

जहां सतयुग,त्रेतायुग और द्वापरयुग में छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता था, नवरात्री में कन्या पूजन कर उन्हें सम्मान दिया जाता था, आज इस कलियुग में उन्ही मासूम कन्याओ के साथ बड़ी कुरुरता के साथ बर्ताव किया जा रहा है, निर्ममता से उनकी हत्या कर दी जाती है, ये सब तुम मनुष्यो को शोभा नहीं देता,यदि तुम अपने असली कर्तव्य और अपने सही कर्म को भुला चुके हो तो अब समय के साथ तुम्हे अपने द्वारा किए प्रत्येक भूल का स्मरण कराने हेतु समय के साथ इस पर अंकुश लगाने हेतु इसका अंत करना अनिवार्य है। ताकि एक नए अध्याय की शुरुआत हो घोर अंधकार से भरी इस रात्रि का अंत हो और दिव्य  प्रकाश से भरी ऊर्जा के साथ एक नई सुबह की शुरूवात हो। 

ये कब होगा कैसे होगा इसे सबके प्रत्यक्ष उजागर करना किसी के बस में नहीं, यदि कोई आप लोगो को गुमराह कर रहा कि इस तारीख को कलियुग का अंत हो जाएगा तो ये सरासर गलत है क्योकि ईश्वर अपने लीलाओ का वर्णन पहले से उजागर नहीं करते ना ही किसी को इसका आभास कराते है क्योकि ये ईश्वर के नियम के विरुद्ध है। मैं कोई ज्योतिष नहीं,मैं कोई संत महात्मा नहीं,मैं कोई ज्ञानी महापुरुष नहीं,मैं कोई भगवान नहीं,मैं तो बस आप सभी मनुष्यो की शुभचिंतक हूँ,मैं तो ईश्वर की एक छोटी सी भक्त और उनकी सेविका हूँ। मेरा उदेश्य है आपको जागरूक करना, सत्य से आपको परिचित करना,दीनहीन प्राणियों की सहायता करना। 

रहा सवाल इस कलियुग के अंत का तो अंत केवल पाप और अधर्म का होता है,अंत केवल दुष्ट और कुरूर असुरो का होता है,यदि मनुष्य हो कर भी तुम अपनी कुरुरता और अधर्म पर अंकुश नहीं लगाए तो बड़ा ही भयावह अंत तुम्हारे नजदीक खड़ा है जिसकी अनुभूति तुम्हे समय के साथ होने लगेगी जब प्रकृति अपने मूल स्वरुप को धारण करेगी। 


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SNEHA AMROHI- ( From- India )





There are four yugas, the first is Satya Yuga, the second is Treta Yuga, the third is Dwapar Yuga and the fourth is Kali Yuga.

Satyayug- In which only the path of truth was chosen, no sin or adharma tried to raise its head, everywhere the period of Satyayug was full of charity, compassion, love and affection. Greed, jealousy, hatred, arrogance, anger, selfishness, all these bad vices and bad deeds were forbidden in Satyayug. Today in this Kaliyug where our own people are burning in the fire of jealousy and hatred towards their own family, in Satyayug no human being used to have any hatred or animosity towards any other human being, even strangers used to treat strangers like their own family, but in this Kaliyug some people treat their own people like strangers.

But time does not stop, time keeps moving ahead, the period of Satyayug ended in no time, then came Tretayug but in this era too, sin and adharma had not increased so much, humans were not so wicked, but the demons were not the ones to sit quietly, they keep on showing their wickedness, but in Tretayug, the terror of demons only increased who had a terrible end. Then in this way the time period of Tretayug also ended, after that came Dwaparyug, in this era you all heard the mention of the wonderful deeds of Krishna avatar. In this era too many adharma were killed, this Dwaparyug full of Krishna's deeds also ended with its time period after which Kaliyug started.

Whereas in the Satyug, Tretayug and Dwaparyug, people used to sacrifice their lives for their family, in this Kaliyug era, people do not hesitate or regret killing their own people to satisfy their greed and selfishness.

You are a human being, not God, that you will kill any living being. Even God never tortures innocent people. God does not take the life of any human being because a person attains death only after completing his life span.

Today, the sin on this earth which is moving ahead by violating its limits, is definitely reaching its end on its own. The people of Satyug, Tretayug, Dwaparyug never tried to become demons. If they made any mistake, they accepted that mistake and accepted their punishment for it, but where do the people of today accept their mistakes? Rather, they are proud of their mistakes and every bad deed, because no one has come till now to punish them for their mistakes. This is the reason why today lies are prevalent on this earth. Liars are ruling, they are full of wealth and grains and true people are bearing pain and suffering, they neither have much wealth nor much respect. Because today in this Kaliyug, only those are getting respect who are building luxurious palaces for themselves by walking on the path of lies and unrighteousness and are roaming around in expensive cars, who are arranging big posts and governance for themselves by buying some people with a few pieces of paper.

Whereas in Satyug, Tretayug and Dwaparyug parents and elder brothers were given the status and respect equal to God, in this Kaliyug parents are neither given respect nor love, even a brother does not like to see his brother, has anyone thought about the consequences of this?

Husband and wife are considered to be complementary to each other, both take vows to live and die together, promise to support each other in every happiness and sorrow. The love, sacrifice and faith that was alive in the Satyug, Tretayug and Dwaparyug, that love, sacrifice and faith is no longer alive in this Kaliyug. The dedication, service and respect that a wife should have for her husband is rarely seen in this Kaliyug. Even looking at another man other than her husband was considered a sin. Today in this Kaliyug, some women are cheating their husbands for their selfishness and greed and are making contact with another man, somewhere the husband is cheating his wife and making a relationship with another woman. What is all this? Is it a game? This is a sin, which has to be paid for one day.

Where in Satyug, Tretayug and Dwaparyug, small girls were considered as the form of goddess, they were respected by worshipping girls in Navratri, today in this Kaliyug, those same innocent girls are being treated with great cruelty, they are killed mercilessly, all this does not suit you humans, if you have forgotten your real duty and your right karma, then now it is necessary to end this to curb it in time so that you are reminded of every mistake you have made. So that a new chapter begins, this night full of intense darkness ends and a new morning begins with the energy full of divine light.

When and how this will happen is not in anybody's power to reveal it to everyone. If someone is misleading you people that Kali Yuga will end on this date then this is totally wrong because God does not reveal the description of his deeds in advance nor does he give anyone an idea of ​​it because this is against God's law. I am not an astrologer, I am not a saint, I am not a wise great man, I am not God, I am just a well-wisher of all you humans, I am a small devotee of God and his servant. My purpose is to make you aware, to acquaint you with the truth and to help poor creatures.

Now as far as the end of Kaliyug is concerned, only sin and evil come to an end, only the wicked and the evil demons come to an end, if being a human being you do not control your evil and evil then a very dreadful end is standing near you, which you will start feeling with time when the nature will assume its original form.


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SNEHA AMROHI- ( From- India )


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  1. You have described it very beautifully, I liked your article very much. I have no words to praise it. Thank you from my heart...👍😊

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