अहंकार और ईर्ष्या ऐसे दो विनाशकारी विकार हैं जो मनुष्य हो देवता किसी के लिए भी उचित नहीं होता। इसलिए ऐसे विकारो से सभी को दूर रहना ही हितकर होता हैं। आप चाहे किसी मंदिर में जाए मस्जिद में जाए चर्च या गुरुद्वारा में जाए आपकी दुआ तबतक कुबूल नहीं होती जबतक आप पूरी श्रद्धा नहीं रखते और हर विकारो से मुक्त नहीं होते। कुछ लोगो के पास अधिक धन होने जाने के कारणवश उनमे अहंकार जाग जाता हैं,वो खुद को सबसे बड़ा और सबसे महान समझने लगते हैं। ऐसे सच कहु तो हमारे कुछ अपने रिश्तेदारों में भी अहंकार और ईर्ष्या का अत्यधिक बोलबाला होता हैं। क्योकि कुछ ऐसे इंसान होते हैं जिनमे अपनों के लिए ज्यादा परवाह,प्यार और सम्मान जैसे गुण लेस मात्र भी नहीं रहता। अकसर हमारे रिश्तेदारों में जो अधिक धन और पैसो से संपन्न रहते हैं वो किसी अन्य की तरक्की और कामयाबी देख उनसे ईर्ष्या जैसी भावना रखने लगते हैं। कुछ परिवार के ऐसे सदस्य होते हैं जिनके पास बहुत पैसे और दौलत हैं मगर वो अपने ही परिवार के सदस्यों के मदद के वक़्त कोई ना कोई बहाना बता कर उनके दुःख और मुसीबतो में साथ नहीं देते हैं। मैं,मेरा इन स्वार्थी शब्दों से बेहतर हैं हम और हमारा जैसी भावना हर मनुष्य में जागृत हो ताकि वो सदैव अपने ही फायदे के लिए स्वार्थी ना बने और किसी अन्य को खुद से तुच्छ समझने की भूल ना करे। इस संसार में कुछ भी किसी का नहीं हैं यहाँ तक की आपका अपना शरीर और आपकी जिंदगी भी आपकी नहीं जिसके लिए आप स्वार्थ वश ना जाने कितने लोगो कि जिंदगी बर्बाद करने पे लगे हो। हर वक़्त अपना सुख हर वक़्त अपना फायदा सोचने वाले लोग इस बात से बेखबर हैं कि वो अपने रिश्तेदार और मित्र की नज़रो में गिर ही रहे हैं साथ ही साथ ईश्वर की कृपा से भी वंचित हो रहे हैं। ईश्वर ने ही सभी को ये कीमती जीवन प्रदान किया हैं। और ईश्वर जब सभी मनुष्यो को धरती पर भेजते हैं तो हर मनुष्य ईश्वर से यह वचन देता हैं की वो अपनी जिंदगी में सदैव लोक कल्याण और जन सेवा का प्रतिपल ध्यान रखेगा और स्वार्थ अहंकार नफरत ईर्ष्या तथा क्रोध जैसे बुरे विकारो का कभी चयन नहीं करेगा। तब ईश्वर हर प्राणी को इस दुनिया में यह वचन ले कर भेजते हैं ताकि उनका भक्त उनकी संताने इस संसार में बुराई और पाप को मिटा कर ईश्वर की बनाई दुनिया में धर्मकी स्थापना में सहयोगी बन सके। मगर इस दुनिया में आ कर बुरी शक्तियों के वश में उलझ कर ईश्वर की संताने कई अधर्म,अनीति, बुरी संगति, और बुरे विकारो से ग्रसित हो कर अपना विवेक खो बैठे हैं। कोई अधिक धन की मोहमाया में उलझ कर अपनों का ही दुश्मन बन बैठा हैं तो कोई किसी की तरक्की और कामयाबी को देख उनसे ईर्ष्या जैसी बुरी भावना जैसी विकारो से ग्रसित हो कर अन्याय और अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा हैं। जो मनुष्य बुरे विकारो का चुनाव कर अहंकार और ईर्ष्या वश किसी दूसरे का अपमान कर किसी को दुःख और पीड़ा पहुँचा रहे वो सावधान हो जाए क्योकि आप ईश्वर से बड़े और ईश्वर से शक्तिशाली कदापि नहीं हो सकते चाहे आपके पास कितने भी धन दौलत और पैसे हो मगर जबतक आप संस्कार और आदर्श को नहीं अपनाएंगे तबतक ईश्वर भी आपको अपने सच्चे भक्त के रूप में नहीं अपनाएंगे। यदि आप अहंकार और ईर्ष्या का त्याग नहीं करेंगे तो यही अहंकार और ईर्ष्या स्वयं आपके विनाश का कारण बनेगे। अपने जीवन के अंत समय में हर व्यक्ति और हर अधर्मी को अपने प्रत्येक कर्म याद आते हैं जब बहुत देर हो जाती हैं इससे बेहतर होगा आप समय रहते खुद की कमियों को खुद के हाथो सुधार ले जिससे भविष्य में आपको किसी के आगे शर्मिंदा ना होना पड़े और शान से आप शीश उठा कर समाज और दुनिया का सामना कर सके। क्योकि पैसा धन दौलत सब यही रह जाता हैं इंसान के साथ एक मात्र उसका कर्म और पुण्य जाता हैं। मरने के बाद तो मनुष्य का शरीर भी उसका साथ छोड़ जाता हैं तो ये धन दौलत और पैसे कैसे साथ जा सकते हैं ? जब किसी मुजरिम को अदालत के कटघरे में खड़ा किया जाता हैं उससे अनेको सवाल और जवाब पूछे जाते हैं वहां पर तो मनुष्य के पैसो से ख़रीदे झूठे सबूत और वकील उसके रिहाई में उसकी मदद करने पहुँच जाते हैं मगर मृत्यु के बाद ऐसा नहीं होता इंसान के हर गुनाह और पाप कर्म का सारा लेखा जोखा ईश्वर के पास होता हैं और ईश्वर के कटघरे में किसी की सफाई और झूठ काम नहीं आता ना ही कोई दौलत और पैसा काम आता हैं। ईश्वर की सज़ा यहाँ की सज़ा से अधिक भयंकर और विनाशकारी होती हैं जिसका अनुमान किसी को नहीं।
''अहंकार और ईर्ष्या कैसे व्यक्ति के पतन का कारण बनता हैं।''(How Ego and Jealousy Lead to the Downfall of a Person.)
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February 25, 2024
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Ego and jealousy are two such destructive disorders which are not suitable for anyone, be it a human being or a god. Therefore, it is beneficial for everyone to stay away from such disorders.Whether you go to a temple, a mosque, a church or a Gurudwara, your prayers are not accepted unless you have full faith and are free from all vices.Due to having more money in some people, ego gets awakened in them and they start considering themselves as the biggest and greatest. To tell the truth, ego and jealousy are very prevalent among some of our relatives too. Because there are some people who do not even have qualities like much care, love and respect for their loved ones.Often, our relatives who are rich and wealthy start feeling jealous after seeing the progress and success of others. There are some family members who have a lot of money and wealth but while trying to help their own family members, they give some excuse or the other and do not support them in their sorrows and troubles.The feeling of 'we' and 'ours' is better than these selfish words 'I', 'mine', so that the feeling of 'we' and 'our' should be awakened in every human being so that he does not always become selfish for his own benefit and does not make the mistake of considering anyone else as inferior to himself. Nothing in this world belongs to anyone, even your own body and your life are not yours for which you are selfishly trying to ruin the lives of many people. People who think of their own happiness and benefit all the time are unaware of the fact that they are not only falling in the eyes of their relatives and friends but are also being deprived of God's grace.God has given this precious life to everyone. And when God sends all human beings to earth, every human being promises to God that he will always take care of public welfare and public service in his life and will never choose bad vices like selfishness, ego, hatred, jealousy and anger. Then God sends every living being into this world with this promise so that His devotee children can help in establishing religion in the world created by God by eradicating evil and sin in this world.But after coming into this world and getting entangled in the power of evil, the children of God have lost their sanity by getting affected by many unrighteousness, injustice, bad company and bad vices. Some have become enemies of their own people by getting entangled in the allure of more money, while others, seeing someone else's progress and success, have become afflicted with vices like jealousy and have started following the path of injustice and unrighteousness.The person who chooses bad vices and causes pain and suffering to others by insulting others out of ego and jealousy should be careful because you can never be greater than God and more powerful than God, no matter how much wealth and money you have. But unless you adopt values and ideals, even God will not accept you as his true devotee. If you do not give up ego and jealousy, then this ego and jealousy itself will become the cause of your destruction. At the end of life, every person and every unrighteous person remembers his every action. When it is too late, it would be better if you correct your shortcomings in time so that you do not have to be embarrassed in front of anyone in the future. And you can face the society and the world with your head held high with pride.Because money and wealth all remain here, only his deeds and virtues remain with a person. After death, even a person's body leaves him, so how can this wealth and money go with him? When a criminal is made to stand in the dock of the court, he is asked many questions and answers. There, false evidence bought with human money and lawyers come to help him in getting his release, but this does not happen after the death of the human being. The entire account of every crime and sinful act is with God and in the court of God, no one's excuses and lies are of any use, nor are any wealth and money of any use. God's punishment is more severe and destructive than the punishment here, which no one can imagine.
आपका यह लेख उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो लोग धन, दौलत पैसे के चक्कर में एक व्यक्ति की पहचान करना भूल जाते हैं और जब उनका अंत समय आता है उनके पास पछताने की सिवा कुछ नहीं बचता।
ReplyDeleteThank you
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