चाहे कोई मनुष्य हो पशु पक्षी हो पेड़ पौधे हो या कोई अन्य प्रत्येक जीवो से ईश्वर एक समान स्नेह करते हैं। एक माँ अपने सभी बच्चों से एक समान स्नेह करती हैं एक माँ कभी अपनी संतान में कोई भेदभाव नहीं करती हैं। माँ की ममता का कोई पार नहीं। जब एक साधारण स्त्री की ममता इतनी अगाढ़ होती हैं तो जो समस्त ब्रह्माण्ड की माता हैं सभी जीवों कि माता हैं उनकी ममता कि सीमा का पता लगा पाना किसी के बस कि बात नहीं। क्योकि उस जगतमाता कि ममता तो एक ऐसा महासागर हैं जो ना ही कभी खाली हो सकता हैं और ना ही कभी कम। मगर जो संतान अपने सही मार्ग से भटक जाए और समझाने के बावजूद भी यदि वो गलत और अनुचित मार्ग का परित्याग ना करे तब ना चाह कर भी उस जगतमाता को उस संतान को उसके पाप और अपराध को रोकने हेतु उसका अंत करना ही पड़ता हैं। जो इस संसार में आजकल इतना प्रचलित हैं हर नवरात्रि के अष्टमी पूजन से ले कर नवमी तथा दशमी, लोग देवी को बलि भेट करने की जो परम्परा निभाते हैं,और ये सोच कर प्रसन्न होते हैं,कि इस तरह एक निर्दोष पशु की बलि से देवी उनसे प्रसन्न हो जाएगी और उनकी सभी मनोरथ को पूर्ण कर देगी तो ये उन मनुष्यो कि बहुत बड़ी भूल हैं। बल्कि ऐसा करने से वो देवी को और दुःखी तथा कुपित कर रहे हैं जिसका अनुमान उन मनुष्यो को नहीं हैं। जब किसी कि कोई मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाती तो वो अक्सर ऐसी भूल करते हैं देवी को बलि भेट कर उनसे याचना करते हैं ताकि शीघ्र देवी उनकी मनोकामना सिद्ध करे। क्या आपको नहीं पता कि एक निर्दोष पशु की हत्या करना अपने स्वार्थ के लिए उसकी बलि देना कितना बड़ा पाप और अधर्म कहलाता हैं ? क्या एक माँ अपनी किसी संतान को ऐसे कष्ट और दर्द में देख प्रसन्न हो सकती हैं ? भले ही आपके लिए कोई भी पशु पक्षी मायने नहीं रखते उनका जीवन भी आपके लिए मायने नहीं रखता मगर समस्त जगत को ऊर्जा और जीवन देने वाली वही जगतमाता हैं जो समस्त प्राणियों में ऊर्जा शक्ति का संचार करती हैं चाहे कोई पशु हो या इंसान उनकी नजरो में सब एक समान हैं उनकी ममता सभी के लिए एक बराबर हैं। यदि समय रहते मनुष्य इस परम्परा को नहीं रोके तो वो दिन दूर नहीं जब वो सौम्य ममता एक रौद्र रूप में आ कर उन सभी का नाश कर देगी जो ऐसी जघन अपराध करने कि भूल कर रहे। वो असहाय बेचारे निर्दोष पशु ने तुम सबका क्या बिगाड़ा हैं जो उसे बलि का भेट चढ़ा कर उसका जीवन उससे छीन रहे ? जरा विचार करो यदि तुमने कोई जुर्म और अपराध नहीं किया मगर निर्दोष होते हुए भी कोई तुम्हे क्षति पहुँचाए या तुम्हे कष्ट दे तो तुम्हारे ऊपर क्या गुजरेगी ? क्या किसी अपने प्रिय जन को कष्ट में तड़पते देख आपको कभी प्रसन्नता हो सकती हैं ? तो उस जगतमाता को कैसे प्रसंन्नता होगी जिसने सभी को जीवन दिया, जिसने सबका निर्माण कर इस धरा पर भेजा ? अपने निजी स्वार्थ कि पूर्ति हेतु किसी कि जिंदगी उससे छीन लेना एक पाप हैं इससे किसी को कभी मुक्ति नहीं मिलती ना ही क्षमा। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो संसार के लिए ये घातक सिद्ध हो सकता हैं। ऐसा पाप और अधर्म कर एक निर्दोष पशु हत्या कर लोग यदि ये समझ रहे कि वो बलि भेट कर देवी को प्रसन्न कर रहे तो ये उनकी मूर्खता हैं। मंदिरो में किसी निर्दोष जीव पशु हत्या करना देवी को उस निर्दोष कि बलि भेट करना उस मंदिर को अपवित्र करना कहलाता हैं देवी को प्रसन्न करना नहीं। एक ये भी कारण हैं जो इस कलयुग में देवी के मंदिरो में बस वो पत्थर कि मूर्ति ही बची हैं उसकी शक्ति छिन्न हो गई देवी,देवता वही मौजूद होते हैं जहाँ पर पवित्रता का वास होता हैं तथा जहाँ पर धर्म का वर्चस्व होता हैं। और धर्म यही कहता हैं किसी निर्दोष जीव या पशु कि हत्या करना आपको पाप का अधिकारी बना देता हैं।
This is also the reason that in this Kalyug, only those stone idols are left in the temples of Goddesses, their power has been snatched away. Goddesses and Gods are present only where purity resides and where religion dominates. And religion says that killing an innocent creature or animal makes you guilty of sin.
ReplyDeleteसंसार के मनुष्य की यह सबसे बड़ी भूल है कि एक पशु की हत्या कर वह किसी देवी देवता को प्रसन्न कर रहे हैं वह तो पाप के भागी बन रहे हैं इसके लिए उन्हें बहुत- बडा़ दंड मिलेगा
सबसे बड़ी पूजा है कर्म❤
Thank you so much.....
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