आप इस दुनिया में जब आए तो आपके पास क्या था ? आपके साथ था तो बस आपका शरीर ,ना कोई वस्त्र ना धन और ना पैसे। ये एक कठोर बात अवश्य लगेगी आप सबको मगर यही जीवन का अटल सत्य हैं। जब कोई मनुष्य अपने प्राण त्यागता हैं जब किसी की मृत्यु होती हैं,तो वो जिस दौलत और पैसो के लिए ज़मीन जायदाद और अपनों के लिए दिन-रात लड़ाई और कलह में अपना जीवन नष्ट करता हैं वो सब निरर्थक हो जाते हैं और यही रह जाते हैं, यदि साथ जाता हैं तो बस मनुष्य का कर्म। क्या आपने कभी गौर नहीं किया जब किसी की मृत्यु होती हैं तो उसके शरीर को शमशान में ले जा कर जला दिया जाता हैं उसी शमशान में कई अनेको मृत मनुष्यो का भी शरीर जलाए जाते हैं। सबका एक ही स्थान हैं अमीर हो या गरीब सबको बिना भेदभाव मृत्यु के पश्चात एक ही स्थान पर ले जाया जाता हैं। आखिर ऐसा क्यों ? क्योकि इस संसार को जन्म देने वाले सभी जीवो को रचने वाले सबका पालन पोषण करने वाले एक ही परमात्मा हैं और आप सब मनुष्य उन्ही की संतान हो। यहाँ कोई अपना और बेगाना नहीं ईश्वर की नजरो में सब एक समान हैं। जब आप सबको एक ही स्थान से इस धरा पर भेजा गया हैं और एक ही स्थान पर वापस जाना हैं तो आप अपने और बेगाने की दीवार क्यों खड़ी करने में अपना कीमती समय नष्ट करने में लगे हो ? जिस दौलत के लिए तुम आज गलत रास्ते पर चल पड़े हो दूसरो को नुकसान पहुँचाने में लगे हो हकीकत में तुम अपना ही नुकसान कर रहे हो क्योकि इस धरा पर कोई भी इंसान बेगाना नहीं यदि तुम्हारी सोच और ज्ञान शक्ति प्रबल हैं सही दिशा में हैं तो आप जीवन के सत्य से कभी वंचित नहीं रह सकते। मगर जो लोग इस संसार में आ कर अमीर और गरीब अपना और बेगाना ये सब भेद करते हैं वो मनुष्य स्वयं ही ईश्वर को खुद से दूर करते हैं क्योकि प्रत्येक प्राणियों में पशु पक्षियों में पेड़ पौधे में सबमे ईश्वर का ही वास हैं, अर्थात सभी प्राणियों में ईश्वर ही वास करते हैं।आप सब उनकी ही संतान हो तो आपको अपने ह्रदय से भेदभाव छोटा बड़ा अमीर गरीब,अपने और बेगाने की सोच नहीं रखनी चाहिए। क्या आपने कभी ये विचार किया हैं कि क्या गुजरती होगी ईश्वर के दिल पर जब आप सभी मनुष्य उनके ही बनाए संसार में उन्ही की सन्तानो में भेदभाव करते हो किसी का अहित सोचते हो किसी को कष्ट पहुँचाते हो अपने अंदर लोभ अहंकार नफरत और ईर्ष्या रखते हो ?
क्यों इस धरा पर आज इतना पाप और अधर्म फैल चूका हैं ? इसकी वजह एकमात्र मनुष्यो के भीतर पल रहे विकार हैं लोभ अहंकार नफरत और ईर्ष्या। क्यों इस धरा पर लोग अपने ही माता - पिता भाई-बहन पति-पत्नी और संतान एक दूसरे के शत्रु बनने पर मजबूर हो चूके हैं ? वो कारण हैं मनुष्यो में स्वार्थ और असंतोष की भावना का विस्तार होना। क्यों इस धरा पर आप मनुष्यो को पैसे ने अपने मोह के मायाजाल में फसा रखा हैं ? इसका एकमात्र कारण हैं मनुष्यो का विवेक शक्ति का छिन्न होना जब किसी व्यक्ति की विवेक शक्ति नष्ट होने लगती हैं तो उसे अच्छा बुरा सही और गलत में परखने की शक्ति मौजूद नहीं रह पाती ऐसे व्यक्ति सही को भी गलत मान लेता हैं और गलत को सही मान कर बुरे कर्मो में अपना रूचि बढ़ा लेता हैं जिससे उस व्यक्ति में लोभ अहंकार पाप अधर्म का विस्तार होने लगता हैं। इसलिए हकीकत को जानने का प्रयास करे सत्य को जाने अपने उदेश्य से अवगत हो कर सही कर्मो का चुनाव करे अपने और बेगाने की दीवार को गिरा कर सबके लिए सम्मान परोपकार दया और करुणाभाव को अपने अंदर जगाने का प्रयास करे क्योकि यहाँ कोई अपना और बेगाना नहीं सभी प्राणी एक हैं तथा आप एक ही परमात्मा की संतान हैं।
कैसे तुम किसी का अहित चाह सकते हो ? कैसे तुम किसी को कष्ट पहुँचा सकते हो ? कैसे तुम अपने हाथो ही अपनों को हानि पहुँचा सकते हो ? इतने अधर्म करने के बाद कैसे तुम स्वयं को परमात्मा की संतान कह सकते हो ? कैसे पाप और अधर्म को अपना कर तुम खुद को इंसान कह सकते हो ? वो मानव ही क्या जिसमे मानवता का वास ना हो, वो इंसान ही क्या जिसमे इंसानियत अपनाने की भावना ही ना हो ?
जहाँ से आए हो एक दिन वही जाना हैं फिर तुम्हारी नजरो में क्यों कोई अपना और कोई बेगाना हैं ?
What did you have when you came into this world? Only your body was with you, no clothes, no wealth and no money. This may seem like a harsh thing to all of you, but this is the steadfast truth of life. When a person gives up his life, when someone dies, then the wealth and money, land and property for which he spent his life in fighting and discord day and night for his loved ones, all become meaningless and remain here only. Yes, if it goes along then it is just human deeds. Have you never noticed that when someone dies, his body is taken to the crematorium and burnt. In the same crematorium, bodies of many dead people are also burnt. Everyone has the same place, whether rich or poor, everyone is taken to the same place after death without any discrimination. Why does this happen? Because there is only one God who created all the living beings who gave birth to this world and who nurtures them all and all of you humans are His children. Here there is no one own or stranger, everyone is equal in the eyes of God. When you all have been sent to this earth from the same place and have to return to the same place, then why are you busy wasting your precious time in building a wall between you and others? Today, for the sake of wealth, you have started on the wrong path and are engaged in harming others. In reality, you are harming yourself because no human being on this earth is a stranger. If your thinking and knowledge power is strong, then you are in the right direction. You can never be deprived of the truth of life. But those people who come into this world and differentiate between rich and poor, their own and strangers, they themselves distance God from themselves because God resides in every living being, in animals, birds, trees and plants, that is, in all living beings. Only God resides in all human beings. If you all are His children, then in your heart you should not discriminate between small, big, rich and poor and should not think about your own or strangers. Have you ever thought about what would be going through God's heart when all of you human beings, in the world created by Him, discriminate against His own children, think harm to someone, cause pain to someone, have greed, pride, hatred and jealousy within you ?
Why has so much sin and unrighteousness spread on this earth today? The only reasons for this are the disorders growing within humans: greed, ego, hatred and jealousy. Why on this earth are people forced to become enemies of their own parents, brothers, sisters, husband, wife and children? Those reasons are the expansion of selfishness and feeling of dissatisfaction among humans. Why on this earth have you humans been trapped in the illusion of money? The only reason for this is the loss of discretionary power of humans. When a person's discretionary power starts getting destroyed then he is no longer able to judge between good, bad and right and wrong. Such a person considers right as wrong and wrong as right. By doing this he increases his interest in bad deeds due to which greed, ego and sin and unrighteousness start expanding in that person. Therefore, try to know the reality, know the truth, be aware of your purpose, choose the right actions, tear down the walls of your own and strangers, respect for everyone, benevolence, kindness and compassion and try to awaken within yourself because here no one is your own or a stranger. All beings are one and you are children of one God.
How can you wish harm to someone? How can you hurt someone? How can you harm your loved ones with your own hands? How can you call yourself a child of God after committing so many iniquities? How can you call yourself a human being by adopting sin and unrighteousness? Is that a human being in whom humanity does not reside, is that a human being in which there is no feeling of adopting humanity?
One day you have to go back to where you came from, then why are some your own and some strangers in your eyes?
प्रत्येक व्यक्ति को हर पल हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए तभी हमारा उद्धार होगा और ईश्वर भी हमसे हमेशा खुश रहेंगे।
ReplyDeleteThank you so much....
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