जिस शक्ति का अंश हैं सबमे हैरान हूँ आज उसका अपमान देख। ( I am Surprised to see the insult of the Power that is present in Everyone Today.)

Snehajeet Amrohi
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वैसे तो हूँ मैं अपने पापा की परी जो हर गम और दुःख से थी अनजान जबतक अपने पापा के साए में थी पली फिर वक़्त ने ऐसी करवट ली कभी जो किसी ने सोचा ना था ऐसा भी होगा, एक दिन छोड़ कर अपनों को पापा की परी को उनसे दूर जाना पड़ेगा। जिंदगी भी कैसी करवट लेती हैं,इंसान नहीं बदलता मगर एक पल में उसकी जिंदगी बदल कर रह जाती हैं। 

माना की मैं अपने पापा की बेटी हूँ उनका बेटा नहीं मगर इससे क्या फर्क पड़ेगा ज़माने को समाज को और इस दुनिया को ? क्योकि बेटा हो कर भी इस दुनिया में जिनके माता-पिता हो रहे बेघर जरा उनसे पूछो क्या अहमियत हैं बेटियों की। 

पैसा पैसा और पैसा इसके सिवा क्या सीखा और क्या जाना किसी ने ?अहमियत ही नहीं रही इस संसार में इंसानो की, आज पैसा ही बन बैठा हैं सबका माँ बाप जिनकी नजरो में वो क्या जाने क्या अहमियत होती हैं रिश्तो की ? 

जो करते नहीं कद्र वक़्त की वक़्त उनका हिसाब लेता हैं फिर जब उन्हें वक़्त की अहमियत का एहसास होता हैं वो वक़्त फिर लौट कर दोबारा नहीं आता हैं। 

माता-पिता के लिए चाहे बेटी हो या बेटा सब एक समान ही होते हैं क्योकि माता-पिता अपने किसी बच्चे में कभी कोई फर्क नहीं करते सभी संताने अपने माता-पिता के ही शरीर का हिस्सा होती हैं भला अपने ही शरीर के हिस्से में कोई भेदभाव कैसे कर सकता हैं ? क्योकि चोट किसी को भी लगे दर्द तो माता-पिता को ही महसूस होगा। 

इस दुनिया में बेटियों के माता-पिता की कद्र क्यों नहीं होती ?

माना की तुम बेटी हो तुम्हे एक ना एक दिन पराए घर जाना हैं मगर जहाँ तुम्हारा बचपन गुजरा जिसके साए में पल कर तुमने अपना वजूद पाया भला वो घर वो माता पिता कैसे तुम्हारे लिए अजनबी हो सकते हैं ? आज समाज में लोग बेटियों के माता पिता पर ऊँगली उठाते हैं बेटे पर नहीं क्यों हैं ऐसी मानसिकता ? वजह ये हैं कोई भी बेटी आज तक अपने माता पिता के समर्थन में ना आगे बढ़ने का प्रयास किया ना ही माता पिता का साथ निभाने का फैसला किया ? विवाह के बाद जैसे लड़के शान से अपने घर रहते हैं क्या बेटियाँ नहीं चाहती वो भी अपने घरवालों के करीब रहे ? चाहे ससुराल हो या मायका किसी में फर्क नहीं कर रही मैं बस आज सबकी आँखे खोलने का प्रयास कर रही हूँ। 

जिस माता पिता का कोई बेटा नहीं जिस माता पिता की बस बेटियाँ हैं उनके लिए एक बात अवश्य कहना चाहूँगी आप अपनी बेटियों के विवाह के लिए जो दहेज़ इकट्ठे कर रहे हैं वो व्यर्थ हैं इससे बेहतर होगा आप उन पैसो से अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर इतना कामयाब बनाए जिससे आपकी बेटी का भविष्य तो बनेगा ही साथ ही साथ आपकी बेटियाँ कभी आपके लिए बोझ नहीं बनेगी ना ही आप जैसे माता पिता किसी की नजरो में बोझ बनेगे। 

जिस माता-पिता का बेटा हैं जिन्हे इस बात का अभिमान हैं मुझे भगवान ने बेटा दिया हैं मुझे क्या सोचने और परेशान होने की जरुरत हैं ? ऐसे माता-पिता का ही अभिमान एक दिन उनका बेटा तोड़ता हैं। क्योकि बेटा हो या बेटि वो ईश्वर का ही देन हैं जिसका किसी को अभिमान नहीं करना चाहिए। 

देश की सभी बेटियों से आज मैं यही कहना चाहूँगी मेरा पूरा समर्थन उन बेटियों को  मिलेगा जो कुछ बड़ा करना चाहती हैं अपने माता पिता के लिए अपने भविष्य के लिए। 

जैसे बाग कलियों के बगैर अधूरा और वीरान कहलाता हैं ठीक वैसे ये संसार और आपका घर बेटियों के बगैर अधूरा और वीरान कहलाता हैं। बहुत भाग्यशाली होते हैं वो माता पिता जिनके घर में बेटियों का जन्म होता हैं, क्योकि जिस माँ की ममता से ये संसार आज प्रफुल्लित हैं, वो माँ भी कभी किसी की बेटी ही थी। 

जब एक पिता अपनी बेटी का कन्यादान करते हैं वो अपने सीने पर पत्थर रख कर अपने दिल के टुकड़े को वर को सौपते हैं। एक पिता का दर्द कोई और नहीं समझ सकता। हैरान हूँ मैं संसार की अवस्था को देख कर एक पिता अपना पूरा कमाया धन और उसके साथ-साथ अपनी जान से भी प्यारी बेटी को किसी पराए को सौप देते हैं फिर उनकी बेटी उनसे दूर चली जाती हैं जो लाड-प्यार एक बेटी को उसके माता पिता के घर में प्राप्त होता हैं फिर ससुराल में अनजान लोगो के बीच उसे मिल पाना संभव नहीं होता मगर बेटियाँ बहुत हिम्मत वाली होती हैं वो हर दुःख को सहन कर अपने माता-पिता के सम्मान को बरक़रार रखती हैं। 

मगर जब बेटियों के माता-पिता को बुढ़ापे में किसी की जरुरत पड़ती हैं तो उन्हें अपनी ही बेटियों से चाह कर भी नहीं मिलाया जाता हैं ऐसी बेटियों को यही संदेश देना चाहूँगी जब तुम्हारा बचपन था तुमने माता-पिता का साथ पाया जब तुम्हारा युवावस्था आया तो तुमने माता-पिता का सहयोग पाया मगर जब वक़्त आया तुम्हारे साथ निभाने का तो कैसे तुमने अपने माता-पिता का साथ देना जरुरी नहीं समझा ?

चाहे बेटी का जन्म हो या बेटे का एक माँ को दोनों के प्रसव की पीड़ा एक समान ही होती हैं फिर बेटियाँ बोझ और बेटे किस्मतवाले क्यों कहलाते हैं ?

जो कोई देव त्रिदेव ना कर सके वो किया एक स्त्री ने वो कोई अन्य नहीं थी वो शक्ति का अवतार जिसने दानवो के अत्याचार से मुक्त कराया समस्त संसार। कात्यायन ऋषि के घर जन्म ले कर उनकी पुत्री कात्यायनी कहलायी। आज इस धरा पर हर कन्या में जिसका अंश निहित हैं वो कन्याएं आज सबकी नजरो में बोझ बनी हैं। 




Actually, I am my father's angel, who was unaware of every pain and sorrow till the time I grew up in my father's shadow, then time took such a turn that no one ever thought that this would happen, one day I will leave my loved ones and father's angel Will have to go away from them. Life also takes such turns, a person does not change but his life changes in a moment.

I agree that I am my father's daughter and not his son, but what difference will this make to the society and the world? Because even after having a son, just ask those whose parents are becoming homeless in this world, what is the importance of daughters.

Money, money and money, what else has anyone learned or known? In this world, humans are no longer important, today money has become everyone's parents, in whose eyes they don't know what is the importance of relationships?

Those who do not value time, time takes account of them, then when they realize the importance of time, that time never comes back again.

For the parents, whether it is a daughter or a son, everyone is the same because the parents never make any difference between any of their children. All the children are a part of their parents' body. How can one discriminate? Because no matter who gets hurt, only the parents will feel the pain.

Why are daughters' parents not appreciated in this world ?

I agree that you are a daughter, you have to go to a foreign house one day or the other, but how can that house where you spent your childhood and in whose shadow you found your existence, those parents, be strangers to you? Today in the society people point fingers at the parents of daughters and not at the sons, why is there such mentality? The reason is that till date no daughter has tried to move forward in support of her parents nor has decided to support her parents? Just as boys live proudly in their own homes after marriage, don't daughters want them to also stay close to their families? Be it in-laws or maternal house, I am not making any difference, I am just trying to open everyone's eyes today.

I would like to say one thing for those parents who have no sons and only daughters. The dowry you are collecting for the marriage of your daughters is useless. It would be better if you use that money to educate your daughter. Make it so successful that it will not only improve your daughter's future but also your daughters will never become a burden for you, nor will parents like you become a burden in anyone's eyes.

For parents who have a son and are proud of the fact that God has given them a son, what do I need to think and worry about? One day, the pride of such parents is broken by their son. Because whether it is a son or a daughter, it is God's gift and no one should be proud of it.

Today I would like to say this to all the daughters of the country, my full support will be given to those daughters who want to do something big for their parents and for their future.

Just as a garden is incomplete and desolate without buds, similarly this world and your home are incomplete and desolate without daughters. Very lucky are those parents in whose house daughters are born, because the mother whose love makes the world happy today, was also someone's daughter once.

When a father perform ritual of kanyadan of his daughter, he places a stone on his chest and hands over a piece of his heart to the groom. No one else can understand the pain of a father. I am surprised to see the condition of the world, a father hands over all his earned money and along with it, his daughter, who is dearer to him than his life, to a stranger and then his daughter goes away from him, who pampers a daughter by her mother. It is found in the father's house and then it is not possible to meet it among unknown people in the in-laws' house, but daughters are very courageous, they bear every sorrow and maintain the honor of their parents.

But when the parents of the daughters need someone in their old age, then they are not allowed to meet their own daughters even if they want to. I would like to give this message to such daughters: When you were a child, you got the support of your parents, when you came into adulthood. So you got the support of your parents, but when the time came to live with you, how did you not consider it necessary to support your parents?

Whether it is the birth of a daughter or a son, the pain of giving birth to a mother is the same, then why are daughters called a burden and sons lucky?

What none of the Gods and Trinity could do, was done by a woman. She was no other than the incarnation of Shakti who freed the entire world from the tyranny of demons. Born in the house of sage Katyayana, his daughter was called Katyayani. Today, every girl on this earth whose part is present in her, those girls have become a burden in everyone's eyes.


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