आज की दुनिया में आप मनुष्य किसी ना किसी कारणवश दुःख या चिंताग्रस्त रहते हैं। किसी को पैसे का दुःख हैं, तो किसी को जॉब और करियर का की चिंता हैं, किसी को अपने प्यार को खोने का दुःख हैं,तो किसी को अपनों के बीच बढ़ रहे तनाव और रंजिशों का दुःख हैं।यहाँ पर अब सोचने वाली बात ये हैं की आखिर दुःख और चिंता मनुष्यो के जीवन में आता कैसे हैं ?
( 1 ) पहला मुख्य कारण है मनुष्य के भीतर समाहित अविश्वास -
ये अविश्वास ही तो हैं जो व्यक्ति को सत्य भी झूठ नजर आता हैं और झूठ सच नजर आता हैं। किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास पर ही टिका होता हैं जब विश्वास ही नहीं तो कोई भी रिश्ता किसी काम का नहीं। क्योकि जब रिश्ते में विश्वास खत्म हो जाता हैं वो रिश्ता टूट कर बिखर जाता हैं। आप खुद विचार करे आपके सही होने के बावजूद भी यदि कोई आप पर हर वक़्त शक करे आपके किसी भी बात पर विश्वास ना करे तो क्या आप उस इंसान के साथ जिंदगी गुजार पाएंगे ?
अब जॉब या करियर की बात कर लेते हैं मान लीजिए आपका सपना हैं आईएएस ( IAS ) बनना मगर आपको स्वयं की मेहनत पर विश्वास ही नहीं तो फिर आप उस बड़े मक़ाम तक कैसे पहुँच पाएंगे ? जब हर वक़्त आपके दिमाग में डर और अविश्वास समाहित रहेगा,तो कोई भी जॉब या पढ़ाई आपको बेहतर परिणाम नहीं दे सकती।
( 2 ) दूसरा मुख्य कारण हैं मनुष्यो में बसा लोभ,अहंकार और क्रोध -
लोभ,अहंकार और क्रोध जिसमे समाहित हो जाता हैं वो दूसरे का तो शत्रु बनता ही हैं साथ ही साथ अनजाने ही सही मगर वो स्वयं का ही सबसे बड़ा शत्रु बन जाता हैं क्योकि लोभ इंसान को अँधा बना देता हैं उसे सिवाय अपने फायदे के किसी अन्य का कष्ट और दुःख नजर नहीं आता हैं ऐसे में वो व्यक्ति लोभ में आ कर दुसरो को नुकसान या हानि पहुँचाने का प्रयास करता हैं। ठीक उसी तरह अहंकार भी व्यक्ति के मस्तिष्क को अशांत कर देता हैं उसे स्वयं के सिवा दूसरा कोई बेहतर नहीं दिखाई पड़ता।
In today's world, you humans remain sad and worried for some reason or the other. Some are worried about money, some are worried about job and career, some are sad about losing their loved ones, and some are sad about the growing tensions and animosities among loved ones.
( 1 ) The first main reason is the distrust inherent in man -
It is this distrust that makes a person see truth as a lie and a lie as the truth. The foundation of any relationship is based on trust. If there is no trust then no relationship is of any use. Because when trust ends in a relationship, that relationship breaks apart. Think for yourself, if someone doubts you all the time and doesn't believe anything you say despite you being right, will you be able to spend your life with that person?
Now let's talk about job or career, suppose your dream is to become an IAS but you don't have faith in your hard work, then how will you be able to reach that big position? When fear and distrust are present in your mind all the time, then no job or studies can give you better results.
( 2 ) The second main reason is the greed, ego and anger present in humans-
( 3 ) The Third main reason is overthinking -
ये अविश्वास ही तो हैं जो व्यक्ति को सत्य भी झूठ नजर आता हैं और झूठ सच नजर आता हैं। किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास पर ही टिका होता हैं जब विश्वास ही नहीं तो कोई भी रिश्ता किसी काम का नहीं। क्योकि जब रिश्ते में विश्वास खत्म हो जाता हैं वो रिश्ता टूट कर बिखर जाता हैं। आप खुद विचार करे आपके सही होने के बावजूद भी यदि कोई आप पर हर वक़्त शक करे आपके किसी भी बात पर विश्वास ना करे तो क्या आप उस इंसान के साथ जिंदगी गुजार पाएंगे ?
अब जॉब या करियर की बात कर लेते हैं मान लीजिए आपका सपना हैं आईएएस ( IAS ) बनना मगर आपको स्वयं की मेहनत पर विश्वास ही नहीं तो फिर आप उस बड़े मक़ाम तक कैसे पहुँच पाएंगे ? जब हर वक़्त आपके दिमाग में डर और अविश्वास समाहित रहेगा,तो कोई भी जॉब या पढ़ाई आपको बेहतर परिणाम नहीं दे सकती।
( 2 ) दूसरा मुख्य कारण हैं मनुष्यो में बसा लोभ,अहंकार और क्रोध -
लोभ,अहंकार और क्रोध जिसमे समाहित हो जाता हैं वो दूसरे का तो शत्रु बनता ही हैं साथ ही साथ अनजाने ही सही मगर वो स्वयं का ही सबसे बड़ा शत्रु बन जाता हैं क्योकि लोभ इंसान को अँधा बना देता हैं उसे सिवाय अपने फायदे के किसी अन्य का कष्ट और दुःख नजर नहीं आता हैं ऐसे में वो व्यक्ति लोभ में आ कर दुसरो को नुकसान या हानि पहुँचाने का प्रयास करता हैं। ठीक उसी तरह अहंकार भी व्यक्ति के मस्तिष्क को अशांत कर देता हैं उसे स्वयं के सिवा दूसरा कोई बेहतर नहीं दिखाई पड़ता।
अहंकारवश वो सबका अपमान करने लगता हैं स्वयं को श्रेष्ट मान बैठता हैं और दुसरो को तुच्छ समझने की भूल ही उसे घोर अंधकार में डाल देती हैं जहाँ से बाहर आने का रास्ता एकमात्र सत्य को जानना और स्वयं के भीतर दयाभाव जागृत करना ही एकमात्र विकल्प होता हैं। क्रोध से आजतक ना किसी का भला हुआ हैं ना कभी होगा। क्योकि क्रोध विनाश की और संकेत करता हैं ये क्रोध जिसमे हावी होने लगता हैं उसमे कुरुरता का समावेश होने लगता हैं जिसके कारण व्यक्ति सही को भी गलत ठहराने लगता हैं बिना जाने बिना सोचे आवेश में आ कर अक्सर गलत फैसले या गलत कदम उठाने पर व्यक्ति मजबूर हो जाता हैं।
( 3 ) तीसरा मुख्य कारण हैं अधिक सोचना -
( 3 ) तीसरा मुख्य कारण हैं अधिक सोचना -
आपको ऐसा लगता हैं की अधिक सोचने से आपको समस्याओ का हल मिल जाएगा यहाँ तक तो बात ठीक हैं मगर कभी-कभी अधिक सोचने से सीधा असर आपके दिमाग पर होता हैं जो दिमाग आपको सही और गलत, अच्छे और बुरे के बीच फर्क को समझने में मदद करता हैं,आपको सोचने से रोका नहीं जा रहा यदि आपकी सोच सकारात्मक हैं तो आपको परिणाम भी सकारात्मक ही मिलेंगे मगर यदि आपकी सोच नकारात्मक हैं तो आपको कभी कोई सकारात्मक और बेहतर परिणाम नहीं मिल सकता।
आज के दौर में मनुष्यो की सबसे गंभीर और जटिल समस्या यही हैं की वो अच्छे और बुरे सभी को एक ही तराजू में तौल देता हैं अर्थात यदि संसार में कोई एक बुरा हैं तो वो बाकि को भी बुरा समझने लगता हैं ये जरुरी नहीं हर कोई गलत हो यदि आपकी सोच जैसा मैंने बताया वैसी हो गई तो आप कभी दुःख और चिंता में नहीं डूबेंगे।
आपके हर गम की एक दवा यही हैं स्वयं को बदले अपनी सोच को बदले ये ना सोचे कोई अन्य आपके लिए खुद को बदले बस इतना कर के देखे आपमें बेहतर बदलाव देख लोग स्वयं ही खुद में बदलाव पाएंगे।
आज के दौर में मनुष्यो की सबसे गंभीर और जटिल समस्या यही हैं की वो अच्छे और बुरे सभी को एक ही तराजू में तौल देता हैं अर्थात यदि संसार में कोई एक बुरा हैं तो वो बाकि को भी बुरा समझने लगता हैं ये जरुरी नहीं हर कोई गलत हो यदि आपकी सोच जैसा मैंने बताया वैसी हो गई तो आप कभी दुःख और चिंता में नहीं डूबेंगे।
आपके हर गम की एक दवा यही हैं स्वयं को बदले अपनी सोच को बदले ये ना सोचे कोई अन्य आपके लिए खुद को बदले बस इतना कर के देखे आपमें बेहतर बदलाव देख लोग स्वयं ही खुद में बदलाव पाएंगे।
Now the thing to think about here is, how does sadness and worry come into human life?
( 1 ) The first main reason is the distrust inherent in man -
It is this distrust that makes a person see truth as a lie and a lie as the truth. The foundation of any relationship is based on trust. If there is no trust then no relationship is of any use. Because when trust ends in a relationship, that relationship breaks apart. Think for yourself, if someone doubts you all the time and doesn't believe anything you say despite you being right, will you be able to spend your life with that person?
Now let's talk about job or career, suppose your dream is to become an IAS but you don't have faith in your hard work, then how will you be able to reach that big position? When fear and distrust are present in your mind all the time, then no job or studies can give you better results.
( 2 ) The second main reason is the greed, ego and anger present in humans-
The person who is filled with greed, ego and anger not only becomes the enemy of others but also becomes his own biggest enemy, even if unknowingly, because greed makes a person blind. He cannot see anyone else's pain and sorrow except his own benefit. In such a situation, the person tries to harm others by getting greedy. In the same way, ego also disturbs the mind of a person. He does not see anyone better than himself.
Due to ego, he starts insulting everyone, considers himself superior and the mistake of considering others insignificant throws him into deep darkness, from where the only way to come out is to know the only truth and awaken compassion within oneself.Anger has never done any good to anyone till date, nor will it ever do. Because anger indicates destruction. When anger starts dominating, cruelty starts getting involved in it, due to which the person starts judging the right as wrong. Without knowing and without thinking, a person is often forced to take wrong decisions or wrong steps in a fit of anger.
( 3 ) The Third main reason is overthinking -
You feel that by thinking more you will find a solution to your problems, this is fine but sometimes thinking more directly affects your brain, which helps you to understand the difference between right and wrong, good and bad. You are not being stopped from thinking. If your thoughts are positive then you will get positive results too, but if your thoughts are negative then you will never get any positive and better results.
In today's time, the most serious and complex problem of humans is that they weigh both good and bad on the same scale, that is, if someone in the world is bad, then he starts considering others as bad too. It is not necessary that everyone is wrong. If your thinking becomes as I have told, then you will never drown in sorrow and worry.
This is the only medicine for all your sorrows. Change yourself, change your thinking. Don't think that someone else should change himself for you. Just do this and see, seeing the better change in you, people will themselves find a change in themselves.
This is the only medicine for all your sorrows. Change yourself, change your thinking. Don't think that someone else should change himself for you. Just do this and see, seeing the better change in you, people will themselves find a change in themselves.
ReplyDeleteWe should always think positively, keep writing continuously, you should not lose courage, Google itself will give you AdSense approval 👍
Thank you so much.....
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