बन कर आज अग्नि जो दहक रही हैं ,तुम्हारे ही कर्मो का फल हैं जो प्रकृति तुमसे बदला ले रही हैं,खेलने का दुस्साहस किया हैं मनुष्यो ने प्रकृति के साथ, आज तुम्हारे ही कर्मो की सज़ा प्रकृति तुम्हे दे रही हैं।।
क्यों अग्नि सी तप रही हैं ये पृथ्वी ? क्यों आग बरसा रहा आसमान ? झाँक कर देखो अपने जहन में तभी होगा तुम्हे सत्य का अनुमान।।
बस अपना फायदा अपनी खुशी अपने स्वार्थ के लिए जिया अबतक तुमने, पेड़ो को काट कर प्रकृति का निरादर किया जो तुमने आज उसी का बदला वो तुमसे ले रही हैं,जो बन कर अंगार कुदरत तुमपर बरस रही हैं।।
जिसके गोद में पल कर तुम बड़े हुए,आज उसी की ममता भरी आँचल को तुम भूल गए उसकी संतान हो कर भी तुम अपने-पराए के मतभेद में कैसे उलझ गए।।
इस प्रकृति के ही संतान हो तुम सब इसलिए प्रकृति ने तुम सबको संभलने का एक मौका दिया मगर अपने स्वार्थ और अभिमान में तुमने उस मौके को गवा दिया आज उसी का परिणाम हैं जो प्रकृति ने तुम्हे ये दंड दिया।।
आकाश की ऊंचाई और आकाश की लम्बाई का ज्ञात लगा पाना किसी के बस की बात नहीं ये हैं ईश्वर का करिश्मा जिसकी गहराई तक पहुँच पाना किसी के लिए आसान नहीं, फिर कैसे ये दीवार लगा दी तुमने जाति और धर्म की, तुम्हारी नफरत की आग हैं ये जो तुम्हे ही जला रही हैं।।
हर कन्याओ में अंश हैं जिस शक्ति का किया हैं तुमने उनका अपमान प्रकृति अपना कहर दिखाएगी ही अब क्यों बन रहे तुम नादान।।
कबसे ये पृथ्वी पाप का बोझ उठा रही? कबसे ये संसार अधर्म के जुल्म को सह रहा ? अब बहुत हुआ सितम तुम्हारा क्योकि यही वो समय हैं की धर्म और न्याय का विस्तार करू मैं दोबारा।।
पूत कपूत हो सकते हैं मगर माता नहीं होती कुमाता, यदि पुत्र अधर्म का चुनाव करे तो कैसे शांति धारण कर सकती हैं माता ? तुम्हारे ही कर्मो का फल हैं ये जिसका बदला तुमसे ले रही ये प्रकृति माता।।
निभाओगे तुम अपने फर्ज को करोगे विश्व का विकास, इस धरा पर भेजा तुम्हे जिस प्रयोजन से मैंने तुमपे कर विश्वास, मगर नफरत और स्वार्थ में उलझ गया ये संसार, यूही नहीं भड़क रही आज सबपर क्रोधाग्नि, क्योकि हैं सब प्रकृति के गुनहगार।।
Why is this earth burning like fire? Why is the sky raining fire? Look inside your mind and only then will you realize the truth.
Till now you have lived only for your own benefit, your happiness and your selfishness. You have disrespected nature by cutting trees and today it is taking revenge for the same from you as nature is showering embers on you.
In whose lap you grew up, today you have forgotten the loving care of that person. Despite being his child, how did you get entangled in the differences between your own and others.
You all are children of this nature, that is why nature gave you all a chance to recover, but due to your selfishness and pride you lost that opportunity and today is the result of that, nature has given you this punishment.
It is not in anyone's power to find out the height of the sky and the length of the sky, this is God's miracle, whose depth is not easy for anyone to reach, then how did you build this wall of caste and religion, this is the fire of your hatred which is burning you.
Every girl is a part of that power which you have insulted, nature will show its wrath, now why are you acting naive.
For how long has this earth been bearing the burden of sin? For how long has this world been bearing the tyranny of injustice? Now I have had enough of your oppression because this is the time to expand righteousness and justice once again.
A son can be a bad son but a mother cannot be a bad mother. If the son chooses evil then how can a mother remain peaceful? This is the result of your own deeds for which Mother Nature is taking revenge from you.
You will fulfil your duty and develop the world, I sent you to this earth for that purpose, having faith in you, but this world got entangled in hatred and selfishness, it is not for nothing that the fire of anger is flaring up on everyone today, because everyone is guilty of nature.
ReplyDeleteMan has become so blind in fulfilling his needs that the trees and plants of nature which give us oxygen are being cut down by today's man. Very nice poem by you.
💐🥳
Thank you....
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