हर रिश्ता रहता बरकरार यदि ना लगाई होती किसी ने ये नफरत की दीवार फिर क्यों होता आज किसी भी रिश्ते में टकरार ?
हर रिश्ता विश्वास और सम्मान के बल पर ही टिका होता हैं। चाहे कोई भी रिश्ता हो जब तक उस रिश्ते में विश्वास और सम्मान का वास नहीं होगा वो रिश्ता कभी मजबूत और अटूट नहीं हो सकता। कितना अजीब हैं ना जब आप किसी से शिद्दत से प्यार करते हैं तो उसके लिए कुछ भी कर जाने को तैयार हो जाते हैं और जब आप किसी से बेहद नफरत करते हैं तो भी उसको चोट और नुकसान पहुंचाने के खातिर कुछ भी कर जाने को तैयार हो जाते हैं दोनों ही सूरते हाल में इंसान अपनी जूनून की आड़ में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं मगर जहां पर इंसान प्यार करता हैं वहां पर किसी के भलाई में उसकी खुशियों के लिए उसके हित में कुछ भी करने को तैयार रहता हैं मगर जहां पर बात नफरत की आती हैं तो वहां पर इंसान किसी के अहित में कुछ भी कर जाने को तैयार हैं।
इंसान को किसी से नफरत कब होती हैं ? आज इसका जवाब मैं देती हूँ। इसे मैं दो पहलुओं में बताऊंगी। इंसान को किसी से नफरत तब होती हैं जब कोई उसके मर्जी अनुसार कोई कार्य नहीं करता या जब कोई इंसान दूसरे इंसान से ज्यादा तरक्की करने लगता हैं तो उस इंसान की तरक्की देख कुछ लोग उससे ईर्ष्या और नफरत करने लगते हैं। दूसरे पहलू में इंसान को किसी से नफरत तब होने लगती हैं जब कोई किसी गलत मार्ग का अनुसरण करता हैं किसी का अहित करता हैं।
ये संसार आज जिस कठिन परिस्थिति में आ कर खड़ा हैं उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती क्योकि जो कार्य भगवान का हैं उसे इस धरा पर रहने वाले इंसानों ने अपने हाथों में ले डाला आज उसी का भयंकर परिणाम देश में इंसान भुगत रहे हैं मगर कोई भी स्वयं के अंदर झांक कर नहीं देखता की उसके भीतर कितनी खामिया मौजूद हैं फिर भी वो हर दिन कोई ना कोई त्रुटि करता रहता हैं।
कोई बड़ी दुर्घटना घटित होने से पूर्व लोगो को यदि पहले से आगाह कर दिया जाता हैं तो यदि वो घटना घटित होती भी हैं तो लोग सावधान हो जाते हैं जिससे उस घटना में कुछ लोगो को क्षति या नुकसान से नहीं गुजरना पड़ता हैं मगर इस कलयुग के बुराई से ग्रसित मनुष्य इतने ढीठ हैं जिन्हे किसी भी आगाह से कोई मतलब नहीं वो अपने हर रिश्ते को दांव पर लगा बैठे हैं अपने स्वार्थ के ही कारण अपने माता-पिता, भाई-बहन,पति-पत्नी, संतान किसी को भी नुकसान पहुंचाने से बिल्कुल पीछे नहीं हटते। दुष्टता और कुरुरता अपनी चरमसीमा को लाँघ चुकी हैं जिसका एक ही विकल्प हैं वो हैं विनाश।
क्यों इस धरा पर अनर्थ होने के बावजूद भी भगवान ने हस्तछेप नहीं किया ? इसका मुख्य कारण हैं की जब इंसानों ने ईश्वर के कार्यभार को अपने हाथों में लेने का जो जघन पाप किया हैं उसी के परिणामस्वरूप आज इस धरा पर जुर्म और अधर्म का बसेरा हो रखा हैं यही कोप हैं ईश्वर का जो आज सब भुगत रहे हैं। जरा विचार करो जन्म देने वाला और मृत्यु देने वाला जब स्वयं परमात्मा हैं तो कैसे तुम इंसान हो कर किसी भी बेगुनाह को निर्ममता से जान से मार सकते हो ? जब भगवान ने हर रिश्ता बनाया तो कैसे उस रिश्ते को तुम अपने स्वार्थ के लिए बर्बाद कर सकते हो ? इंसान हो कर भी अपनी इंसानियत को तुम कैसे भूल गए ? जब किसी भी रिश्ते को निभाने का हुनर नहीं जब तुम्हे सही और गलत को परखने का ज्ञान नहीं तो तुम चले हो ईश्वर के धाम ऐसे पवित्र धाम पर तुम्हारा क्या काम ? यही वजह हैं जो आए दिन तीर्थ स्थलों में तीर्थ धाम में बड़ी दुर्घटनाएं, प्राकृतिक आपदाएं घटित हो रही अपने कोप से वो प्रकृति तुम्हे रोक रही यदि अब भी नहीं की किसी ने अपनी भूल को स्वीकार तो अपने विनाश का होगा वो स्वयं ही जिम्मेदार।
Every relationship would have remained intact if no one had built this wall of hatred, then why would there be conflict in any relationship today?Every relationship is based on trust and respect. Whatever the relationship is, unless there is trust and respect in that relationship, that relationship can never be strong and unbreakable. How strange it is, when you love someone intensely, you are ready to do anything for him/her and when you hate someone intensely, you are ready to do anything to hurt and harm him/her. In both the situations, a person is ready to do anything under the guise of his/her passion, but where a person loves, he/she is ready to do anything for the good of the person, for his/her happiness, but where it comes to hatred, a person is ready to do anything to harm the person.
When does a person start hating someone? Today I will answer this. I will explain it in two aspects. A person starts hating someone when someone does not do something according to his wish or when a person starts progressing more than another person, then seeing the progress of that person some people start getting jealous and hating him. In the second aspect, a person starts hating someone when someone follows a wrong path and harms someone.
The difficult situation in which this world stands today cannot be explained because the work of God was taken into the hands of the humans living on this earth. Today, people in the country are suffering the terrible consequences of the same. But no one looks inside himself to see how many flaws are present within him. Still, he keeps making some mistake or the other every day.
If people are warned beforehand before a big accident occurs, then even if that incident occurs, people become cautious due to which some people do not have to suffer any harm or loss in that incident but the evil-stricken people of this Kalyug are so impudent that they do not care about any warning, they have put their every relationship at stake, due to their selfishness they do not hesitate at all in harming their parents, siblings, husband-wife, children, anyone. Wickedness and cruelty have crossed their limits, the only option for which is destruction.
Why did God not intervene despite the calamity on this earth? The main reason for this is that when humans have committed the heinous sin of taking God's work in their hands, as a result of that, today this earth has become a place of crime and injustice. This is the wrath of God which everyone is suffering today. Just think, when the one who gives birth and death is God himself, then how can you, being a human, kill any innocent ruthlessly? When God has created every relationship, then how can you ruin that relationship for your selfishness? How did you forget your humanity despite being a human? When you do not have the skill to maintain any relationship, when you do not have the knowledge to differentiate between right and wrong, then you have gone to God's abode, what is your work at such a holy place? This is the reason that every day big accidents, natural disasters are happening in pilgrimage places, nature is stopping you with its wrath, if even now someone does not accept his mistake, then he himself will be responsible for his destruction.
ReplyDeleteWe should be patient in every situation and maintain every relationship with trust, only then we can have a happy life. Very lovely article👍
Thank you....
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