लोग आजकल भक्ति के सही अर्थ को बिना जाने ही स्वयं को ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त बताते हैं जैसे उनसे बड़ा ज्ञानी और महान कोई अन्य हो ही नहीं सकता।भक्ति में इतनी शक्ति होती हैं जो ईश्वर को भी अपने भक्त से मिलने पर विवश कर देती हैं।भक्ति से ही शक्ति को पाया जाता हैं संसार में आज सभी चराचर जीवों में उसी दिव्य शक्ति का वास हैं बिना उस शक्ति के किसी का कोई अस्तित्व नहीं। भक्ति जब तक अपने चरम सीमा तक नहीं पहुँचता तब तक वो भक्ति नहीं कहलाता।
भक्त और भगवान का रिश्ता बहुत अटूट होता हैं एक सच्चा भक्त वही कहलाता हैं जिसके भीतर किसी स्वार्थ और बुरे विकार का वास नहीं होता हैं। आज इस धरा पर ज्यादा संख्या में जो खुद को ईश्वर का सच्चा भक्त बताते हैं उनसे जरा पूछो उन्होंने अपनी भक्ति के लिए कौन सा त्याग और बलिदान दिया हैं ?
त्याग और बलिदान का अर्थ ये नहीं की आप ईश्वर को अपनी जिंदगी ही समर्पित कर दो स्वयं को हानि पहुँचाओ बल्कि त्याग और बलिदान उन बुरे विकारों का करो जो तुम्हारे भक्ति में अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।मेरे कहने का तात्पर्य ये हैं की इस संसार में जो भी मनुष्य हैं सब उसी परमात्मा की ही संतान हैं और एक संतान कभी अपने माता-पिता से विमुख नहीं हो सकती ना ही माता-पिता अपनी संतान से विमुख हो सकते हैं मगर यदि संतान अपने भीतर बुराई को पालना शुरू कर दे दुसरो का अहित कर यदि अपने माता-पिता के समक्ष जा कर उनका सम्मान करे तो माता-पिता अपनी संतान की इस कुरुरता से भला कैसे खुश हो सकते हैं ? आज इस कलयुग में वही तो घटित हो रहा हैं लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं तो कभी किसी की हत्या कर रहे हैं और स्वयं को महादेव का सच्चा भक्त समझते हैं ऐसे कुरुर और अश्लील भक्त नहीं बल्कि एक मुजरिम या गुनहगार कहलाते हैं।
भक्ति की शक्ति इस कलयुग में खो चुकी हैं जिसका मुख्य कारण हैं इस धरा पर हो रहा पाप और अधर्म।
जो हाथ किसी के कत्ल के लिए उठे वो हाथ कभी ईश्वर की भक्ति के लिए नहीं उठ सकते क्योकि ईश्वर के बनाएं नियमों को तोड़ने वाले कभी ईश्वर के भक्त नहीं कहलाते। बुरे विकारों से ग्रसित आज इस धरा पर चारों ओर मनुष्यों ने इस धरा को अपवित्र कर दिया हैं जरा स्वयं विचार करे आखिर क्या वजह हैं जो इस कलयुग में आपकी पूजा का फल आपको शीघ्र प्राप्त नहीं हो रहा ? क्या वजह हैं जो ईश्वर ने मौन धारण कर रखा हैं ? आज मंदिरों में जिसे देखो ईश्वर की भक्ति में लीन रहता हैं मगर भक्ति का सही अर्थ क्या हैं वो उससे ही अनजान रहता हैं। ये मनुष्यों द्वारा किए गए पाप ही हैं जो इस धरती को अपवित्र और दूषित कर रखा हैं यही वजह हैं जो ईश्वर की शक्तियाँ इस कलयुग में पाप के बोझ तले दब चुकी हैं और इस पाप को मिटाने के लिए ईश्वर को स्वयं ही मनुष्य बन कर मनुष्यों के किए गए हर अपराध और पाप का फल दंड स्वरुप देने आना होगा मानवता क्या होती हैं इसका पाठ पढ़ाना होगा क्योकि सब इस धरा पर मानव तो बन गए मगर बुरे विकारों से ग्रसित हो कर स्वयं को दानव में तब्दील कर चुके हैं।
आप स्वयं विचार करे गंदे मैले हाथों से जब आप कोई वस्तु स्पर्श करते हैं तो वो वस्तु भी वैसे ही मैली और दूषित हो जाती हैं तो मनुष्य जब बुरे विकारों से ग्रसित हो कर बुरे विचारों को अपने मन में पाल कर बुरे कर्मो द्वारा स्वयं को दूषित कर यदि ईश्वर की भक्ति करेगा या ईश्वर की मूर्ति स्पर्श करेगा तो वो भक्ति कैसे फलित हो सकती हैं और कैसे किसी को सार्थक परिणाम दे सकती हैं ? यही वजह हैं की कलयुग में दैविक शक्तियाँ छिन्न हो चुकी हैं।
Nowadays people call themselves the biggest devotees of God without knowing the true meaning of devotion, as if no one else can be more knowledgeable and great than them.There is so much power in devotion that it forces even God to meet his devotee. Power can be attained only through devotion. That divine power resides in all living and non-living creatures in the world. Without that power, no one has any existence.Unless devotion reaches its peak, it is not called devotion.The relationship between a devotee and God is very strong. A true devotee is one who has no selfishness or bad habits within him.Today, on this earth, there are many people who call themselves true devotees of God, just ask them what sacrifices and sacrifices have they made for their devotion?
Renunciation and sacrifice does not mean that you dedicate your whole life to God and harm yourself, but renounce and sacrifice those evil passions which are trying to create obstacles in your devotion.What I mean to say is that all the human beings in this world are the children of the same God and a child can never turn away from his parents nor can the parents turn away from their children but if the child starts harboring evil within himself and harms others and goes to his parents and respects them then how can the parents be happy with this wickedness of their children? Today in this Kalyug the same thing is happening, people are trying to harm someone for their selfishness and sometimes they are killing someone and consider themselves to be the true devotee of Mahadev, such wicked and obscene people are not devotees but are called criminals or offenders.
The power of devotion has been lost in this Kaliyug, the main reason for which is the sin and injustice happening on this earth.
The hands that are raised to kill someone can never be raised for the devotion of God because those who break the rules made by God are never called the devotees of God. Today, this earth is afflicted with evil vices and humans have defiled it. Just think for yourself, what is the reason that you are not getting the fruits of your worship in this Kaliyug? What is the reason that God has maintained silence? Today, in temples, whoever you see is immersed in the devotion of God, but he remains unaware of the true meaning of devotion. It is the sins committed by humans that have defiled and polluted this earth. This is the reason that the powers of God have been crushed under the burden of sin in this Kaliyug and to eradicate this sin, God himself will have to come as a human and punish the fruits of every crime and sin committed by humans. He will have to teach the lesson of what humanity is because everyone has become a human on this earth, but has turned himself into a demon by being afflicted with evil vices.
Think for yourself, when you touch any object with dirty hands, that object also becomes dirty and contaminated. So, when a man, afflicted with bad vices, harbors bad thoughts in his mind and contaminates himself with bad deeds, worships God or touches the idol of God, then how can that worship bear fruit and how can it give meaningful results to anyone? This is the reason that in Kaliyug, the divine powers have been destroyed.
ReplyDeleteOur devotion can be successful only when along with devotion our deeds are also good and we can help every living being.👍
you are absolutely right....
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