मान लो कई दिनों से किसी मेज पर अत्यधिक लकड़ियों का बोझ रखा जाए और फिर से उस मेज पर और लकड़ियों को रख दिया जाए तो लकड़ियों के बोझ के दवाब से वो मेज कमजोर होता चला जाएगा और एक दिन वो लकड़ियों सहित वो मेज टूट कर बिखर जाएगा।
क्यों ऐसी कहावत कही गई हैं कि चिंता चिता के समान हैं, ऐसा इसलिए कहा गया हैं क्योकि चिंता मनुष्य के चित्त को हर लेती हैं,अत्यधिक चिंतन से मनुष्य का दिमाग एक रोगी के समान रोगग्रसित होने लगता हैं,जिससे सोचने समझने की शक्ति छिन्न हो जाती हैं क्या अच्छा हैं और क्या बुरा मनुष्य ये समझ नहीं पाता। यहां तक कि चिंता में मनुष्य को खुशी का भी आभास नहीं होता ना तो वो अपना देखभाल उचित प्रकार कर पाता हैं और ना ही अपने परिवार का। जिस मनुष्य के दिमाग में चिंता का समावेश होने लगता हैं वो मनुष्य स्वयं को सबसे दूर कर लेता हैं,ना तो उसे किसी की बात अच्छी लगती हैं और ना ही किसी का साथ उसे पसंद आता हैं। जिसमे सोचने समझने की ही शक्ति नष्ट हो जाए जिसे खुद की भी खबर नहीं वो मनुष्य एकमात्र जिंदा लाश नहीं तो और क्या हो सकता हैं भला ?
चिंता से चतुराई घटे,दुःख से घटे शरीर,लोभ किए धन घटे, इस दोहे से संसार को जो सीख दी जा रही हैं यदि हर मनुष्य इसे समझ जाए तो वो कभी स्वयं पर चिंता और दुःख को हावी नहीं होने देगा।
चिंता का मानव जीवन पर दुष्प्रभाव -
चिंता में मनुष्य अपने स्वास्थ को भी नुकसान पहुंचाने का कार्य करता हैं। मानव जीवन में अनेको समस्याएं आते-जाते रहती हैं इसका मतलब ये नहीं कि मानव समस्याओ में खुद को इतना उलझा ले कि खुद की भी सुध बुध ना रहे। जब तुम कुछ कर नहीं सकते हो तो फिर सोच कर या चिंतन कर तुम क्या हासिल कर लोगे ? तुम्हे जरा भी अनुमान नहीं कि तुम चिंता में डूब कर स्वयं को ही हानि पहुंचाने का प्रयास कर रहे हो। जिसका सीधा असर तुम्हारे स्वास्थ पर पड़ेगा,जब तुम ही स्वस्थ नहीं रहोगे तो तुम्हे अपनी समस्याओ से और चिंताओं से मुक्त कौन करेगा ? समझदारी इसी में हैं कि तुम अपने विवेक से काम लो। स्वयं को चिंताओं से मुक्त करो तभी तुम्हारा विवेक जाग सकता हैं, जो तुम्हे सही राह दिखा सकता हैं, यदि तुम दिन-रात व्याकुल और शोकाकुल रहोगे तो तुम्हे और तुम्हारे जीवन को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकता। चिंता में डूबने से तुम्हे अपने सही मार्ग का पता कैसे चल सकता हैं ? क्योकि एक अशांत मन,जिसमे अनेको शोर हो रहे हैं,जो तुम्हारे मस्तिष्क को क्षति पंहुचा रहे हैं जिस मस्तिष्क से ही तुम्हे उचित अनुचित का ज्ञान होता हैं जब वो मस्तिष्क ही क्षतिग्रस्त हो जाए तो तुम्हे कोई मार्ग कैसे दिख सकता हैं भला ? करियर में भी यदि सफलता हासिल होती हैं, तो बस मनुष्य के परिश्रम से तथा अपने ज्ञान की मदद से ही मनुष्य कोई भी बड़ी सफलता या मकाम हासिल करता हैं। मगर तनाव और चिंताओं ने तो तुम्हारा दिमाग जकड़ लिया हैं फिर तुम्हे अच्छे बुरे की पहचान कैसे हो सकता हैं ? चेहरे की चमक,सुंदरता सब कुछ तभी अच्छा लगता हैं जब तुम्हारे दिमाग में कोई दुःख या चिंता का वास नहीं तुमने कभी गौर किया हैं, जो सदैव प्रसन्न रहते हैं दुखो को भुला कर भी खुश रहने का प्रयास करते हैं, उनके चेहरे की चमक और सुंदरता स्वतः ही बढ़ने लगती हैं,बढ़ती उम्र का भी उन पर प्रभाव नहीं होता उम्र अधिक होने के बाद भी वो जवा दीखते हैं,मगर जो सदैव चिंता या दुःख में हर पल डूबे रहते हैं,कम उम्र में ही वो उम्रदराज लगने लगते हैं उनके चेहरे की चमक और सुंदरता गायब होने लगती हैं। चिंता में रहने से मनुष्य का स्वाभाव भी बदलने लगता हैं, उसके स्वाभाव में भी कई बदलाव आने लगते हैं, जैसे कि उनका मिजाज बेरुखी, क्रोध और चिड़चिड़ा होने लगता हैं। अच्छी बात भी उन्हें बुरी लगने लगती हैं मित्र हो या परिवार उन्हें किसी की कोई भी बात पसंद नहीं आती हैं।
ना समय से भोजन करना ना ही समय से सोना इस तरह चिंता में रहने वाले मनुष्य स्वयं को एक रोगी बना लेते हैं, जिसका इलाज किसी चिकित्सक के पास नहीं क्योकि इस बीमारी को तुमने स्वयं जन्म दिया हैं,जिसका इलाज एकमात्र तुम कर सकते हो कोई और नहीं।
If you are able to solve any problem then it is not wrong to think about that problem because without thinking you cannot find any alternative or solution to it but when you do not have the solution to that problem then if you try to let that problem dominate your mind too much then your worries will increase which will not only affect your life but also your health and mind.Suppose a heavy load of wood is kept on a table for many days and then more wood is kept on it, then the table will gradually become weak due to the pressure of the load of wood and one day the table along with the wood will break into pieces.
Why is it said that worry is like a funeral pyre? It is said because worry takes away the mind of a person. With excessive thinking, the mind of a person starts becoming diseased like a patient, due to which the power of thinking and understanding is lost. A person is unable to understand what is good and what is bad. Even in worry, a person does not feel happy, neither is he able to take proper care of himself nor his family. The person whose mind starts getting filled with worry, that person distances himself from everyone, neither does he like anyone's talk nor does he like anyone's company. The person in whom the power of thinking and understanding is lost, who is not even aware of himself, that person is nothing else than a living corpse?
Worry reduces intelligence, sadness reduces the body, greed reduces wealth, the lesson being taught to the world through this couplet is that if every person understands this, then he will never let worry and sadness dominate him.
The Harmful Effects of Anxiety on Human Life -
A person in anxiety also harms his health. Many problems keep coming and going in human life, but this does not mean that a person should get so entangled in problems that he loses his senses.When you cannot do anything then what will you achieve by thinking or contemplating ? You have no idea that by worrying you are only trying to harm yourself.Which will have a direct impact on your health, when you yourself are not healthy then who will free you from your problems and worries? It is wise to use your discretion.Free yourself from worries, only then your conscience can awaken which can show you the right path, if you remain restless and sad day and night then no one can stop you and your life from getting ruined.How can you know the right path by drowning in worries? Because a disturbed mind, in which there are many noises, is damaging your brain, the brain through which you get the knowledge of right and wrong, when that brain itself is damaged, then how can you see any path? If success is achieved in career, then it is only due to hard work and with the help of knowledge that a person can achieve any big success or position.But tension and worries have gripped your mind, then how can you differentiate between good and bad? The glow of the face, beauty, everything looks good only when there is no sorrow or worry in your mind. Have you ever noticed that those who are always happy, try to be happy even by forgetting their sorrows, the glow and beauty of their face increases automatically. Even increasing age does not affect them. They look young even after growing old. But those who are always immersed in worries or sorrows, start looking old at a young age itself. The glow and beauty of their face starts disappearing.Due to worry, a person's nature also starts changing, many changes start coming in his nature, such as his mood starts becoming indifferent, angry and irritable. Even good things start seeming bad to him, whether it is a friend or family, he does not like anything said by anyone.
Neither eating on time nor sleeping on time, such worried people make themselves a patient whose cure no doctor has because you yourself have given birth to this disease, whose cure can only be done by you, no one else.
ReplyDeleteWe should not worry too much but should be patient because only a calm mind is able to find solutions to problems. Very lovely article by you....👍
Thank you....
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