जिंदगी में दुःख सुख तो आते जाते रहते हैं,मगर कुछ दुःख ऐसे भी होते हैं जिन्हे जानबूझ कर आमंत्रित किया जाता हैं।
हमारे भारत देश में प्रत्येक वर्ष में एक बार पितृपक्ष आता हैं, जिसे सभी बड़ी श्रद्धा भाव से मनाते हैं,ऐसा माना जाता हैं कि पितृपक्ष के महीने में हमारे पूर्वज हमारे आस पास रहते हैं,उनकी कृपा आशीर्वाद पाने के लिए सभी मनुष्य अपने पितरो की पूजा, श्राद्ध आदि करते हैं जिससे उनके पूर्वज प्रसन्न होते हैं,कहा जाता हैं कि पिंड दान करना हमारे हिन्दू सनातन धर्म में अति विशेष माना जाता हैं,ऐसा करने से हमारे पूर्वजो को मुक्ति मिल जाती हैं और वो मोक्ष को पा जाते हैं।
बिहार के गया जिले में विष्णुपद मंदिर हैं जहां प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष का मेला लगता हैं,वहीं उसके निकट फल्गु नदी हैं,जहां स्नान आदि से पवित्र हो कर श्रद्धालु पिंड दान, पूजा और श्राद्ध कर्म आदि करते हैं,क्योकि एकमात्र ये गया धाम ही कलयुग का मोक्ष धाम माना गया हैं,जहां श्राद्ध और पिंड दान करने से मृतक की आत्मा इधर-उधर नहीं भटकती वो मोक्ष पा जाता हैं।
ये पवित्र नगरी विष्णुपद के नाम से इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योकि यहां साक्षात् भगवान विष्णु प्रकट हुए थे उनके चरण कमल का पद चिन्ह आज भी यहां मौजूद हैं, साथ ही अनेको देवी,देवता भी यहां मौजूद हैं,इसलिए गया एक पवित्र नगरी मानी जाती हैं। इस नगर का नाम गया इसलिए पड़ा क्योकि गयासुर नामक एक असुर था जो भगवान विष्णु का परम भक्त था,उसके भक्ति भाव को देख श्री विष्णु से उसे वरदान प्राप्त हुआ जिससे गया में जो भी श्राद्ध,पूजा या पिंड दान करेंगे उनके पितरो को मुक्ति शीघ्र प्राप्त हो जाएगी वो मोक्ष को पा कर स्वर्गलोक में निवास करेंगे। इसकी कहानी बहुत लंबी हैं विस्तार में कभी किसी और दिन मैं इस पर चर्चा करुँगी फिल्हाल जो मुख्य बाते हैं उस पर अभी चर्चा करना अति आवश्यक हैं।
हाँ, तो मैं अपने विषय पर आती हूँ, जीते जी कोई भी अपने माता-पिता भाई बंधू किसी की कद्र नहीं करते,कुछ लोग स्वार्थ और लालच में आ कर अपने ही बड़े बुजुर्गो को घर से निकाल देते हैं,तो कुछ लोग उन्हें मारते-पीटते रहते हैं,कभी उन्हें भूखा रखते हैं,कभी उनसे काम करवाते हैं।
एक जिल्लत भरी जिंदगी माता-पिता जीने पर मजबूर हो जाते हैं,मगर उन माता-पिता की आँखों से निकला आंशु कभी व्यर्थ नहीं जाते, वो आंशु ही उन संतानो के लिए एक अभिशाप बन जाता हैं,जिससे वो कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।
मैं हर दिन देखती और सुनती रहती हूँ कैसे कुछ लोग निर्दयी बन कर अपने माता-पिता को हर दिन सताते रहते हैं,मगर जब माता-पिता की मृत्यु हो जाती हैं तो झूठे आंशु बहा कर समाज में ये दिखाते हैं कि उन्हें बहुत लगाव था अपने माता-पिता से। जीते जी तो चैन और प्यार का निवाला खाने को नहीं दिया मगर मरने के बाद पंडितो को बुला कर पूजा श्राद्ध कर अपने माता-पिता से आर्शीवाद लेना चाहते हैं,क्योकि उन्हें लगता हैं पिंड दान,श्राद्ध पूजा उनके पाप को कम कर देंगे और इससे उनके पूर्वज प्रसन्न हो जाएंगे। मगर ऐसी संतानो को मैं बस एक ही बात कहना चाहूंगी,कर्म एक ऐसा बंधन हैं,जिससे चाह कर भी कोई अपना पीछा नहीं छुड़ा सकता हैं,यदि तुमने बबूल के पेड़ लगाए हैं तो तुम्हे आम कहां से प्राप्त हो सकता हैं,कर्म तो ऐसा बंधन हैं जो जीते जी और मरने के बाद भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ता हैं।
ऐसी निर्दयी संतान से एक सवाल करना चाहूंगी,मुझे ये बताओ कोई तुम्हे मार कर और गाली दे कर यदि भोजन दे तो क्या तुम उस भोजन को खुशी-खुशी स्वीकार कर लोगे ? क्या तुम उस इंसान के दिए कष्टों को उस पीड़ा को भुला दोगे ? यकीनन तुम्हारा जवाब ना ही होगा क्योकि किसी को यदि कोई आज एक लब्ज भी बुरा कह दे तो लोग कोहराम मचा देते हैं,यहां तो बात एक ऐसी दारुण कष्ट और पीड़ा की हैं जिसे कोई भी क्षमा नहीं कर सकता।
तुम्हे खुद के लिए मेरे द्वारा कही गई बाते जब सुन कर इतनी पीड़ा पंहुचा रही तो सोचो भला कैसे तुम अपने बुजुर्ग माता-पिता,दादा-दादी को इतनी पीड़ा या कष्ट पंहुचा सकते हो ? क्या तुम्हारे हाथ नहीं कांपते ? क्या तुम्हारे अंदर दिल नहीं ? क्या तुम इंसान नहीं ?
ये पैसा,दौलत,जमीन,जायदाद,गहने सब यही रह जाएंगे,तुम अजर अमर हो कर नहीं आए हो फिर क्यों तुम उस पाप को कर रहे जिससे तुम्हे कभी मुक्ति नहीं मिल सकती,क्योकि तुम्हारे द्वारा किए गए बुरे कर्म ही तुम्हारे जीवन को एक अभिशाप बना देगा,ये ना सोचना कि कलयुग में कोई पाप और अन्याय की सजा नहीं होती,हर गुनाह की सजा होती हैं,हर कर्म का हिसाब होता हैं,यही नियति हैं जिससे चाह कर भी कोई नहीं बच पाता हैं।
मोक्ष का और मुक्ति का एक ही रास्ता होता हैं,तुम्हारे कर्मो का चुनाव ही तुम्हे उस रास्ते तक ले जाता हैं,पूजा-पाठ,श्राद्ध,पिंड दान ये सब तभी काम आते हैं जब तुम्हारे कर्म सही होते हैं,वरना बुरे कर्म कभी किसी को सार्थक परिणाम नहीं दे सकते, ना ही मुक्ति और ना ही मोक्ष।
In life, happiness and sorrow keep coming and going, but there are some sorrows which are invited intentionally.
In our country India, Pitru Paksha comes once every year, which is celebrated with great reverence by all. It is believed that in the month of Pitru Paksha, our ancestors live around us. To get their blessings, all humans worship their ancestors, perform Shradh etc., which pleases their ancestors. It is said that donating Pind is considered very special in our Hindu Sanatan Dharma. By doing this, our ancestors get liberation and they attain Moksha. Vishnupad temple is located in Gaya district of Bihar where every year Pitru Paksha fair is held.
Near it is Falgu river where devotees purify themselves by taking bath etc. and perform Pind Daan, Puja and Shraddha rituals etc. because this Gaya Dham is the only Moksha Dham of Kalyug where by performing Shraddha and Pind Daan the soul of the dead does not wander here and there and he attains Moksha.This holy city is famous by the name of Vishnupad because Lord Vishnu appeared here in person.
His footprints are still present here. Along with this, many goddesses and gods are also present here. Therefore, Gaya is considered a holy city. This city was named Gaya because there was a demon named Gayasur who was an ardent devotee of Lord Vishnu. Seeing his devotion, he got a boon from Lord Vishnu that whoever performs Shraddha, Puja or Pind Daan in Gaya, their ancestors will get salvation soon. They will get salvation and live in heaven. Its story is very long. I will discuss it in detail some other day. For now, it is very important to discuss the main points.
Yes, so I come to my topic, nobody respects their parents, brothers and relatives while they are alive. Some people, out of selfishness and greed, throw their elders out of the house, some people keep beating them, sometimes keep them hungry, sometimes make them work.
Parents are forced to live a life full of humiliation, but the tears that come out of the eyes of those parents never go in vain. Those tears become a curse for those children, from which they can never get freedom.
I keep seeing and hearing every day how some people become cruel and harass their parents every day, but when their parents die, they shed fake tears and show the society that they loved their parents a lot. They did not give them peace and love while they were alive, but after their death they call the Pandits and perform Puja and Shraddha and want to take blessings from their parents, because they think that Pind Daan, Shraddha Puja will reduce their sins and their ancestors will be happy with this.But I would like to say just one thing to such children, karma is such a bond that no one can escape from it even if they want to, if you have planted acacia trees then how will you get mangoes from it, karma is such a bond that does not leave you alone during life and even after death.
I would like to ask a question to such a cruel child, tell me if someone gives you food after beating and abusing you, will you accept that food happily? Will you forget the pain and suffering caused by that person? Surely your answer will be no because if someone says even one bad word to someone today, people create a ruckus, here it is a matter of such a terrible pain and suffering that no one can forgive.
When you are feeling so much pain after listening to what I have said, then think how can you cause so much pain and suffering to your elderly parents, grandparents? Don't your hands tremble? Don't you have a heart? Are you not a human being?
This money, wealth, land, property, jewelry will all remain here. You have not come here as immortal, then why are you committing that sin from which you can never get salvation, because the bad deeds done by you will make your life a curse. Do not think that in Kaliyug there is no punishment for sin and injustice. There is punishment for every crime, there is an account of every deed. This is destiny from which no one can escape even if they want to.
There is only one way to salvation and liberation, the choice of your deeds takes you to that path, Puja-Paath, Shraddha, Pind Daan, all these are useful only when your deeds are right, otherwise bad deeds can never give meaningful results to anyone, neither liberation nor salvation
ReplyDeleteParents are our God, we get all salvation and virtue only by serving our parents. Very lovely article. 👍
Thank you...
Delete