क्या ये अंत का आगाज हैं ? (Is This The Beginning Of The End?)

Snehajeet Amrohi
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संसार में अब इंसानियत से भरोसा उठते जा रहा हैं, क्योकि अब इंसान के दिलो में नफरत की आग भड़क रही हैं ,हर दिन,हर देश में कोई ना कोई जुर्म हो रहा जिसे देख संसार अपने अंत की ओर बढ़ रहा।

जब मनुष्य भगवान को भी नहीं बख्श रहे,तो वो और किसी को क्या बख्शेंगे ? 

आज देश और दुनिया में जो भी घटित हो रहा हैं,उसे देख अब इंसानियत भी शर्मशार हो गई हैं। अभद्र तरीके से भोजन,आदि में जो मनुष्य दूषित पदार्थ का उपयोग कर रहा,ये बेहद चिंताजनक,अशोभनीय हैं। किसी को कोई हक़ नहीं बनता कि तुम किसी के मजहब या जाति से खिलवाड़ करो,किसी की मर्यादा और विश्वास को भंग करो। खाद पदार्थ में मिलावट,भगवान के भोग प्रसाद में मिलावट कर तुम्हे क्या हासिल होगा ? अरे मूर्खो क्या तुम्हे ऐसा प्रतीत होता हैं कि तुमने भगवान के भोग में अशुद्ध जानवरो के मांस या चर्बी को मिला कर भगवान को दूषित कर दिया ? 

सच तो ये हैं कि तुमने स्वयं ही अपने भविष्य और जीवन को खतरे में डाल दिया। मैं किसी धर्म को बांटने का या अपमानित करने का प्रयास नहीं कर रही बल्कि मैं सत्य को आज प्रकाशित करने का प्रयास कर रही हूँ। किसी के धर्म के विश्वास को तोड़ना या उनके ईश्वर को अपमानित करने का पाप करना तुम्हे ही अंधकार में ले जा रहा हैं। मुस्लिम हो या हिन्दू तुम सभी को एक दूसरे की मजहब का सम्मान करना चाहिए ना की अपमान। मगर अब बात हद से आगे बढ़ चुकी हैं,क्योकि तुमने मानवता को शर्मसार कर  अपनी सारी हदे पार कर दी हैं। क्योकि समझाया उसे जाता हैं जिसमे समझ होती हैं, नासमझ को समझाना बेवकूफी कहलाती हैं। 

मानव हो तो मानव बन कर रहो,यदि दानव बनने का प्रयास करोगे तो मिटा दिए जाओगे,फिर उसी इतिहास को दोहराने की भूल कर रहे हो,जैसी भूल दानवो ने की थी अपने अंदर हैवानियत को जगा कर,फिर उनका भयंकर सर्वनाश हुआ,क्योकि आसुरी प्रवृति को अपनाना यानि अपने अंत का आगाज करना। 

तुम हर दिन कोई ना कोई अपराध करते हो,बिना भय के तुम ईश्वर को भी अपमानित करते हो,क्या लगता हैं तुम्हे कि ईश्वर बस नाम के हैं ? क्या लगता हैं तुम्हे तुम्हारे क्रियाकलाप का कुछ खबर नहीं ईश्वर को ? ईश्वर भी देख रहे हैं,तुम और कितने गिर सकते हो ? क्योकि ईश्वर की एक ऊँगली पर टिका हैं ये संसार,जहाँ उनकी ऊँगली हटी फिर ना तो तुम रहोगे ना ये संसार। तुम उस भयंकर अग्नि से खेलने और चुनौती देने  की भूल कर रहे हो,जिसे ना कोई हवा मिटा सकता,ना जल। 

तुम जिस ईश्वर को नकार रहे हो,वो ईश्वर कण कण में मौजूद हैं। तुम जिस शक्ति के मध् में चूर हो रहे हो वो भी ईश्वर की ही शक्ति हैं,तुम्हारी नहीं,उनका शुक्रिया अदा करने के स्थान पर तुम ईश्वर के बनाए संसार को बर्बाद करने की गुस्ताखी कर रहे हो।  

मान लो समाज में कुछ लोग तुम्हारी खुशियों से ईर्ष्या करते हैं, तुम्हारे परिवार की एकता को देख वो द्वेष करते हैं,एक दिन अचानक कुछ लोग तुम्हारे परिवार को तुम्हारे खिलाफ करने की साजिश करे,वो लोग तुम्हारे परिवार से तुम्हे अलग करने के लिए झूठा आरोप तुम पर लगाए,जो गलती तुमने किया ही नहीं,और तुम्हारा परिवार बिना सच जाने तुम्हे गलत कहे तो क्या गुजरेगी तुम्हारे दिल पर ?

क्योकि कही,सुनाई बातो पर जो यकीन करते हैं वो स्वयं को कुएं में ढकेलने का प्रयास करते हैं। जब तक तुम अपनी आँखों से देख नहीं लेते,जब तक तुम अपनी कानो द्वारा सुन नहीं लेते तब तक तुम्हे दूसरे के कहने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए,इससे तुम्हारा ही अहित हो सकता हैं। ठीक वैसे जो कुछ किताबो में छाप दी गई,जिसमे भगवान को भेदभाव करते बतलाया गया,जो की सत्य नहीं,असत्य हैं ये,यदि भगवान के लिए तुम सभी एक समान नहीं होते तो तुम्हारे भीतर वो शक्ति मौजूद नहीं होती जिस शक्ति के ही कारण आज तुम्हारा जीवन हैं,जिस शक्ति के द्वारा तुम अपना प्रत्येक कार्य कर पा रहे हो,जिस शक्ति के ही कारण आज तुम्हे भी बराबर का हक़ और दर्जा प्राप्त हैं,जैसे जाड़े में सूरज की गर्मी,गर्मी में बारिश और शीतल ठंडी हवा,तुम सबके शरीर के रक्त का रंग एक दूसरे से भिन्न नहीं तो तुम कैसे कह सकते हो की भगवान गलत हैं,तुम सही हो ? जैसे कुछ तुम्हारे भी विरोधी और शत्रु हैं,ठीक वैसे कुछ ईश्वर के भी विरोधी और शत्रु हैं,जिन्हे तुम ना ही देख सकते,ना ही समझ सकते हो,इसलिए स्वयं का ही सर्वनाश करने की भूल मत करो,क्योकि माता-पिता अपने प्रत्येक संतान को एक समान ही प्यार और दुलार देते हैं,मगर जो संतान अपने ही कुल के नाश का कारण बने,ना चाह कर माता-पिता को उसे उसके कुकर्मो का दंड देना पड़ता हैं।  

* मत करो अपने ही अंत का आगाज,मिटा दो आज ही ईर्ष्या और द्वेष का विचार,वरना तुम्हारा समय भी नहीं देगा तुम्हारा साथ,यदि समय रहते नहीं किया तुमने अपने कुकर्मो का परित्याग। 



Now the world is losing faith in humanity, because the fire of hatred is burning in the hearts of humans, every day, in every country some crime or the other is happening, seeing which the world is moving towards its end.

When humans are not sparing even God, then how will they spare anyone else?

Seeing whatever is happening in the country and the world today, humanity has also become ashamed. The use of contaminated substances in food etc. in an indecent manner by humans is extremely worrying and indecent. No one has the right to play with anyone's religion or caste, violate anyone's dignity and faith. What will you gain by adulterating food and offerings to God? Hey fools, do you feel that you have contaminated God by mixing the meat or fat of impure animals in the offerings to God? The truth is that you yourself have put your future and life in danger. I am not trying to divide or insult any religion, rather I am trying to reveal the truth today. Breaking the faith of someone's religion or committing the sin of insulting their God is taking you into darkness. Be it a Muslim or a Hindu, all of you should respect each other's religion and not insult it. But now the matter has crossed all limits, because you have shamed humanity and crossed all your limits. Because one can explain to someone who has understanding, explaining to an ignorant person is called stupidity.

If you are a human then stay human, if you try to become a demon then you will be wiped out, then you are making the mistake of repeating history, the same mistake that the demons made by awakening the brutality inside them, then they met with a terrible destruction, because adopting the demonic tendency means beginning of your end.

You commit some crime every day, without any fear you even insult God, do you think that God exists only in name? Do you think that God has no idea about your activities? God is also watching, how low can you go? Because this world is dependent on one finger of God, if his finger is removed then neither you nor this world will exist. You are making the mistake of playing and challenging that terrible fire, which neither wind nor water can extinguish.

The God you are denying is present in every particle. The power you are getting intoxicated in is also God's power, not yours. Instead of thanking him, you are committing the audacity of destroying the world created by God.

Suppose some people in the society are jealous of your happiness, they hate the unity of your family, one day suddenly some people conspire to turn your family against you, they put false allegations on you to separate you from your family, which you have not committed, and your family calls you wrong without knowing the truth, then what will happen to your heart? 

Because those who believe in what they hear, they try to push themselves into the well. Until you see with your own eyes, until you hear with your own ears, you should not react to what others say, this can only harm you. Just like whatever has been printed in books, in which God has been described as discriminating, which is not true, it is false.

 If all of you were not equal for God, then that power would not have been present within you, due to which you have life today, due to which you are able to do your every work, due to which you have equal rights and status today, like the heat of the sun in winter, rain in summer and cool breeze, the color of the blood in all of your bodies is not different from each other, then how can you say that God is wrong, you are right? Just like some people are your opponents and enemies, similarly there are some opponents and enemies of God too, whom you can neither see nor understand, so do not make the mistake of destroying yourself, because parents give equal love and affection to each of their children, but the child who becomes the reason for the destruction of his own clan, the parents have to punish him for his misdeeds even if they do not want to.

* Don't start your own end, eliminate the thoughts of jealousy and hatred today itself, otherwise even your time will not support you, if you do not abandon your evil deeds in time..

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  1. The biggest religion and caste is humanity, man should keep humanity within himself. Very lovely article.. 👍

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