जब तक तुम किसी से शत्रुता नहीं मोल लेते,तब तक कोई तुमसे शत्रुता मोल नहीं ले सकता, जब तक तुम किसी को हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं करते, तब तक कोई तुम्हे हानि पहुंचाने का प्रयास नहीं कर सकता।
महादेव समस्त जगत के पिता हैं,आदि अनंत भी वही हैं। कैलाश जिनका निवास हैं,जो हर दोष से मुक्त हैं,जिनके लिए असुर हो या देवता,मनुष्य हो या पशु सभी एक समान हैं। जो किसी में भेदभाव नहीं करते, सर्वशक्तिशाली होने के बावजूद भी जो खुद पर अभिमान नहीं करते,जो विशालकाय विषधर सर्पो की माला अपने कंठ में धारण करते,जिनके कैलाश धाम में जा कर शत्रु भी मित्र बनते, उन महादेव के दिए इस सीख को तुम मनुष्य क्यों नहीं पालन करते ?
कहने को तो सब कुछ हैं उनके पास, ऐसा क्या हैं जो नहीं महादेव के पास। फिर भी वो साधारण वेशभूषा धारण करते हैं, दिखावे से वो दूर रहते हैं,जो हैं जीवन का सत्य उसे ही वो कबूल करते हैं,अपनी महानता का वो गुणगान नहीं करते हैं, यूँही नहीं कहलाते वो देवो के देव, समस्त देव भी उनकी मनमोहक छवि को देखने को तरसते हैं, जो रहते छल और कपट से दूर, सिर्फ वो ही शिव को जान पाते हैं।
बहुत दुखी हूँ मैं संसार की दशा को देख,जहां अपने ही अपनों के शत्रु बन बैठे हैं,माता-पिता बड़े बुजुर्गो के सम्मान को आज सब भुला बैठे हैं। मित्र ही मित्र का अहित चाहता हैं,भाई ही अपने भाई से शत्रुता निभाता हैं,क्या होगा इसका परिणाम इसे कोई नहीं जानता हैं,इस संसार में अब परिणाम की चिंता कौन करता हैं ?
जिससे तुम मनुष्य घृणा करते हो,जिसे देख तुम अपनी सुरक्षा के लिए उसकी हत्या करते हो,उसी सर्प को महादेव अपने कंठ में स्थान देते हैं,पशु हो या पक्षी यदि उसे प्रेम और सम्मान प्राप्त हो तो वो भी बदले में तुम्हे प्रेम और सम्मान ही देंगे। सबसे बड़ा विष तो मनुष्य के मन में पल रहा जो सर्प से भी अधिक विषधर हैं, उस विष का क्या करोगे ? उस विष से तुम अपनी सुरक्षा कैसे करोगे ?
तुम जब तक दीवार पर अपना सर नहीं मारोगे ,तब तक तुम्हे दीवार चोट या दर्द नहीं दे सकता। यदि तुम स्वयं ही जा कर दीवार के सामने अपना सर मार रहे तो दीवार क्या करेगी ? इसमें गलती तुम्हारी हैं दीवार की नहीं,तुम स्वयं चल कर दीवार तक गए,दीवार खुद चल कर तुम तक नहीं आई और ना ही आ सकती हैं, जब तक तुम कोई प्रतिकिर्या नहीं देते,तब तक तुम्हे सामने वाला नुकसान नहीं पंहुचा सकता।
महादेव के कंठ में सुशोभित वो सर्पो का हार,महादेव को अति प्रिय हैं,और उतना ही उस सर्प को महादेव प्रिय हैं,क्योकि ना तो महादेव के मन में उस सर्प के लिए कोई घृणा हैं और ना ही उस सर्प के मन में महादेव के लिए कोई घृणा हैं। अर्थात तुम मनुष्य एक दूसरे से घृणा,नफरत जैसी भावना रखोगे तो तुम्हे उसका सकारात्मक परिणाम कहां से प्राप्त होगा ?
महादेव ने किसी को स्वयं से नीचे स्थान प्रदान नहीं किया, सबके इष्ट होने के बावजूद भी महादेव ने सबको स्वयं से भी ऊँचा स्थान दिया हैं,चंद्र को अपने मस्तक के ऊपर स्थान दिया,गंगा को अपनी जटाओ में स्थान दिया,और सर्प को अपने कंठ में स्थान दिया। यदि तुम किसी को भी स्वयं से ऊँचा स्थान दोगे तो इससे तुम उसके समक्ष छोटे नहीं हो जाओगे मगर इस संसार में तो सभी मनुष्यो को सबसे बड़ा बनना हैं और सबको खुद से छोटा समझना हैं,जिस मनुष्य की सोच ऐसी होती हैं,जो सबको स्वयं से छोटा समझते हैं अक्सर वो लोग अपने सम्मान को खो देते हैं, जिससे बाद में वो चाह कर भी किसी की नजरो में ऊपर नहीं उठ पाते ऐसी सोच रखने वाले मनुष्य सबकी नजरो से गिर जाते हैं।
मनुष्य के मन में पलने वाला नफरत का विष उस सर्प से अधिक विषधर हैं जिसके कारण मनुष्य स्वयं का ही विनाश कर लेता हैं। नफरत और प्यार की लड़ाई के बीच जीत हमेशा प्यार की ही होती हैं क्योकि प्यार अमृत के समान होता हैं,जिसपे किसी विष का असर नहीं होता हैं,विष भी प्यार के अमृत को पा कर अमृततुल्य बन जाता हैं।
As long as you do not make enmity with anyone, no one can make enmity with you; As long as you do not try to harm anyone, no one can try to harm you.Mahadev is the father of the whole universe, he is the beginning and the end.Kailash is the abode of Mahadev, who is free from all faults, for whom demons or gods, humans or animals, all are equal. Who does not discriminate against anyone, who does not take pride in himself despite being all-powerful, who wears a garland of huge poisonous snakes around his neck, in whose Kailash Dham even enemies become friends, why don't you humans follow this teaching given by Mahadev?
It is said that he has everything, what is there that Mahadev does not have. Still he wears simple clothes, he stays away from show-off, he accepts the truth of life, he does not sing praises of his greatness, he is not called the God of Gods for nothing, all the gods also yearn to see his captivating image, only those who stay away from treachery and deceit can know Shiva.
I am very sad to see the condition of the world, where our own people have become enemies of their own people, everyone has forgotten the respect for parents and elders. A friend wishes ill for another friend, a brother is hostile towards his brother, no one knows what will be the result, who worries about the result in this world now?
The snake that you humans hate, the snake that you kill for your own safety, Mahadev gives place in his throat, whether it is an animal or a bird, if it gets love and respect, it will also give you love and respect in return. The biggest poison is growing in the mind of a human being, which is more poisonous than a snake, what will you do with that poison? How will you protect yourself from that poison?
Unless you bang your head against the wall, the wall cannot hurt or cause you pain. If you yourself go and bang your head against the wall, what will the wall do? It is your fault, not the wall's. You walked to the wall yourself. The wall did not come to you on its own, nor can it come. Unless you react, the other person cannot harm you.
That necklace of snakes adorning Mahadev's neck is very dear to Mahadev, and that snake loves Mahadev equally, because neither Mahadev has any hatred for that snake nor that snake has any hatred for Mahadev. That is, if you humans keep feelings like hatred towards each other, then how will you get its positive result?
Mahadev never gave anybody a place lower than himself, despite being everyone's god, Mahadev has given everybody a place higher than himself, he gave moon a place on top of his head, gave Ganga a place in his matted hair and gave snake a place in his throat. If you give anybody a place higher than yourself, this will not make you smaller in front of him but in this world every human being wants to become the greatest and consider everybody else smaller than himself, the person who has such a thinking, who considers everybody smaller than himself, those people often lose their respect due to which later they are not able to rise in anyone's eyes even if they want to, people having such thinking fall in everyone's eyes.
The poison of hatred that grows in the mind of a man is more poisonous than the snake due to which man destroys himself. In the battle between hatred and love, love always wins because love is like nectar, on which no poison has any effect, even poison becomes like nectar after getting the nectar of love.
ReplyDeleteAs long as we do not say wrong things to anyone or harm anyone, no one can harm us. You have described it very well through this article.👍
Thanks a lot....
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