दिव्यता कहां पाई जाती है ? Where is Divinity Found?

Snehajeet Amrohi
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दिव्य अर्थात सुंदर,पवित्र जिसमे साक्षात् ईश्वर का वास हो। जैसा कि मैंने कहा दिव्यता कहां पाई जाती है ? आप सब को पता है दिव्यता हर किसी के पास नहीं पाई जाती क्योकि दिव्यता को पाने के लिए सर्वप्रथम हमे स्वयं को पवित्र करना होगा। 

मगर यदि आप दिव्यता को पाने के लिए उत्सुक है, तो आपको सबसे पहले स्वयं को शुद्ध करना होगा। शुद्धता केवल स्नान और साफ- सफाई नहीं बल्कि अपने अंतर्मन से स्वयं को हर दोष से मुक्त करना होगा,बुरे कर्म और बुरे विचारो का सदा के लिए त्याग करना होगा, अपने भीतर छिपे जानवर से लड़ कर उससे जितना होगा, क्योकि मनुष्य के भीतर ही छिपा होता है, कोई ना कोई दोष-विकार जो मनुष्य को जानवर बनने के लिए मजबूर करता है,जिससे मनुष्य ना चाह कर भी कई अपराध और कुकर्म कर बैठता है जिससे वो स्वयं को अपवित्र करने की भूल कर जाता है। 

संसार में कई ऐसे मनुष्य मौजूद है जो आज भी बदलते युग में कभी स्वयं को बदलने का प्रयास नहीं किया बल्कि अपनी अच्छी सोच और कर्मो का चयन कर उन्होंने कई लोगो की सहायता की है,और आज भी कर रहे है। ऐसे निर्दोष चित्त मनुष्य कभी किसी का अहित नहीं करते और ना ही किसी का दिल दुखाने का प्रयास करते है, चाहे वो कितने भी दुःख,दर्द और तकलीफ में क्यों ना हो कभी अपने मन में कोई गलत विचार नहीं लाते। जब त्याग और समर्पण किसी मनुष्य में समाहित होने लगता है,तो वो मनुष्य ईश्वर के करीब होने लगता है,हर पल एक दिव्य ऊर्जा के घेरे में वो स्वयं को महसूस करने लगता है। 

ये क्रोध, नफरत, स्वार्थ,लोभ, अहंकार, ईर्ष्या, मनुष्य के भीतर पलने वाला एक ऐसा जहर है,जो अंदर ही अंदर उसे खोखला बना देता है,मगर मनुष्य भी कहां समझने वाला वो तो इस जहर को अपने भीतर पाल कर रखता है, जिससे उसका ही अहित होता है, क्योकि ऐसे मनुष्य के पास कोई दिव्यता नहीं होती बल्कि ईश्वर का सानिध्य भी उससे दूर हो जाता है। 

आप मनुष्यो को यदि ऐसा लगता है, कि ईश्वर की  दिव्यता केवल मंदिरो में,धार्मिक स्थलों में, तथा तीर्थो में ही पाई जाती है, और कहीं नहीं तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है। 

क्योकि जहां मानवता का वास होता है, वहीं दिव्यता का भी वास होता है, जिनके दिलो में नफरत और घृणा का कोई स्थान नहीं होता, जहां सम्मान और दया का भाव होता है,वहीं दिव्यता का वास होता है, जहां अहंकार और लोभ का कोई स्थान नहीं होता, वहीं दिव्यता का वास होता है। 

अपनी मेहनत और कर्मो पर जो विश्वास करता है, जो सदैव सत्य का अनुसरण करता है, जो हमेशा न्याय का पालन करता है, जो धर्म को ही अपना सब कुछ मानता है, जो छल और कपट से स्वयं को दूर रखता है, वही दिव्यता को अपनी तरफ आकर्षित करता है। 

चाहे दुःख हो या सुख जो अपने धैर्य को बनाए रखता है, जो जीवन के किसी भी मोड़ पर समस्याओ को देख विचलित नहीं होता, जो ईश्वर को बेवजह अपने दुःख का कारण नहीं मानता जो ईश्वर को कभी नहीं कोसता, जो अमीर हो या गरीब किसी में भेदभाव जैसी भावना नहीं रखता, जो अपने बड़े बुजुर्ग का माता-पिता का सदैव सम्मान करता है, वो निरंतर दिव्यताओं से स्वयं को घिरा पाता है। क्योकि दुनिया में बिना तप,त्याग और समर्पण के कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। 


* यदि त्वं ईश्वरीयतां अनुभवितुम् इच्छसि तर्हि स्वविचारान् निर्दोषं कर्तुं शिक्षस्व, मनः शुद्धयितुं शुद्धिं च शिक्षतु, यतः तव चञ्चलं मनः भवतः बृहत्तमः शत्रुः अस्ति, यः शत्रुः बहिः अन्वेष्टुं प्रयतते सः भवतः अन्तः निगूढः अस्ति


 अर्थात -  यदि दिव्यता को महसूस करना चाहते हो तो, खुद के विचारो को दोषमुक्त करना सीखो, अपने मन को शुद्ध और पवित्र करना सीखो, क्योकि तुम्हारा चंचल मन ही तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु है, जिस शत्रु को तुम बाहर ढूंढने का प्रयास कर रहे हो, वो तुम्हारे ही अंदर छिपा है। 




Divine means beautiful, pure, in which God resides. As I said, where is divinity found? You all know that divinity is not found in everyone because to attain divinity, first of all we have to purify ourselves.

But if you are eager to attain divinity, then first of all you have to purify yourself. Purity is not just bathing and cleanliness, but you have to free yourself from every defect from your inner self, you have to give up bad deeds and bad thoughts forever, fight and defeat the animal hidden within you, because there is some defect or disorder hidden within man which forces man to become an animal, due to which man commits many crimes and misdeeds even without wanting to, due to which he makes the mistake of impureing yourself.

There are many such people in the world who have never tried to change themselves even in this changing era, but by choosing their good thoughts and deeds, they have helped many people and are still doing so. Such innocent minded people never harm anyone nor try to hurt anyone, no matter how much sorrow, pain and trouble they are in, they never bring any wrong thoughts in their mind. When sacrifice and dedication starts getting absorbed in a person, then that person starts getting closer to God, every moment he starts feeling himself surrounded by a divine energy.

This anger, hatred, selfishness, greed, ego, jealousy, is such a poison that grows inside a human being, which makes him hollow from inside, but man is not the one to understand, he keeps this poison inside him, which harms him only, because such a person does not have any divinity, rather the proximity of God also goes away from him.

If you humans feel that the divinity of God is found only in temples, religious places and pilgrimages and nowhere else, then this is your biggest mistake.

Because where humanity resides, divinity also resides there, there is no place for hatred and contempt in the hearts of those, where there is a sense of respect and kindness, there divinity resides, where there is no place for ego and greed, there divinity resides.

He who believes in his hard work and deeds, who always follows the truth, who always adheres to justice, who considers righteousness as his everything, who keeps himself away from deceit and fraud, he is the one who attracts divinity towards himself.

Whether it is sorrow or happiness, the one who maintains his patience, who does not get disturbed by seeing problems at any point of life, who does not consider God as the reason for his sorrow without any reason, who never curses God, who does not discriminate between rich and poor, who always respects his elders and parents, he always finds himself surrounded by divinity. Because nothing can be achieved in this world without penance, sacrifice and dedication.


If you want to experience divinity, learn to purify your thoughts, learn to cleanse and purify your mind, because your fickle mind is your biggest enemy, the enemy which you are trying to find outside is hidden inside you.

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  1. Divinity comes close to us only when our thoughts are pure and faultless, when the feeling of humanity arises in us, then we start coming close to divinity. very lovely article by you..... 👍

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