जो भी कमाया तुमने एक पल में उसे गवा दिया, अपनी एक भूल से तुमने अपना सम्मान भी गवा दिया।
आज मैं उनकी बात करने जा रही हूँ जो अपने जीवन में बेसुमार धन-दौलत नाम शोहरत सब कमा कर इकट्ठा कर लेते है मगर अपने कमाए धन और पैसे के अहंकार में वो खुद को भगवान समझने की भूल कर बैठते है। ऐसे लोगो के पास कितने भी धन-दौलत पैसा हो जाए मगर उनका लालच और बढ़ता ही जाता है, अपने इसी लालच में वो अपने इंसानियत को भी भुला देते है और एक दिन जब उनसे सब कुछ खोने लगता है तो उन्हें अपने प्रत्येक भूल और अपराध का स्मरण स्वतः ही होने लगता है,क्योकि ये समय का खेल है,सबका समय एक ना एक दिन अवश्य आता है, फिर जिसने जैसा बीज बोया है वो वही फसल काटता है,यदि तुमने बबूल बोए तो तुम्हे आम कहां से प्राप्त होगा ? अर्थात कर्म सही होता है जिसका वही फल प्राप्त करने का भागीदार होता है,जिसके कर्म ही बुरे है,वो सिवाय कांटे और विष के कुछ अन्य प्राप्त नहीं कर सकता।
कोई गरीब या अमीर पैसे से नहीं होता,ये तो मनुष्यो की भूल है कि वो एक दौलतमंद व्यक्ति को सम्मान की नजरो से देखा करते है और एक गरीब असहाय को हिन और नफरत से देखते है, यदि मैं कहूं कि तुम्हारे विचार और व्यवहार तुम्हे अमीर या गरीब बनाते है तो क्या तुम यकीन करोगे ?
तुम में से कुछ लोग यकीन नहीं करेंगे,क्योकि जिन्हे पैसे का गुरुर होता है,उनका पांव जमीन पर नहीं होता वो खुद को सबसे श्रेष्ठ और महान समझते है,और सबको खुद से छोटा समझते है,यदि मैं आज सत्य का आईना दिखा दू तो आज सबका विश्वास उस अटल सत्य से हो जाएगा जिस सत्य से वो अब तक अनजान है।
एक शिशु जब जन्म लेता है,तो उसे भगवान का रूप क्यों माना जाता है ? क्या इसका उत्तर है किसी के पास ?
मैं बताती हूँ,जब शिशु माँ के गर्भ में पल रहा होता है,तो उसे सही गलत क्या है ? अच्छा बुरा क्या है ? इन सब का ज्ञान नहीं होता वो मासूम निर्दोष बालक जब इस दुनिया में आता है जन्म के बाद जैसे-जैसे वो बड़ा होने लगता है,आस पास के माहौल को देख कर वो उस माहौल के अनुसार ढल जाता है,वो जो आदते अपने घर के माहौल में देखता है,उसे ही अपनाना शुरू कर देता है जो संस्कार उसके बड़े बुजुर्गो से तथा माता-पिता से वो प्राप्त करता है उसके ही अनुसार वो सबके साथ व्यवहार करता है। यदि कोई बच्चा अपने बालयकाल से ही एक बुरे आदर्शहीन परिवार के माहौल में पलता है तो उस बच्चे में भी वही बुरे व्यवहार और आदत समाने लगती है,जैसा व्यवहार वो अपने घर के सदस्यों का देखता है वैसा ही व्यवहार वो भी सबके साथ करना शुरू कर देता है,इसलिए कहा जाता है एक छोटा नवजात शिशु भगवान का रूप होता है,जो सभी बुरे विचारो से और व्यवहारों से अपरिचित होता है।
मेरी बात यही पर खत्म नहीं होती,इस विषय पर अभी चर्चा करना बाकि है, जैसा कि मैंने कहा एक शिशु कैसे और क्यों भगवान स्वरुप कहलाता है,इस बात को आप भलीभाति समझ गए होंगे,अब मैं जो कहने जा रही हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुने यदि आप भी उस निर्दोष शिशु के समान ईश्वर का सानिध्य पाना चाहते है,तो आपको अपने मन पर काबू पाना सीखना होगा,अपनी बुरी आदतों पर,बुरे विचारो पर,बुरे व्यवहारों पर काबू करना सीखना होगा।
कुछ देर पूर्व मैंने कहा कि वो शिशु हर दोष से मुक्त होता है, वो निश्छल,निष्कपट और पवित्र होता है,यही वजह है कि उस शिशु को हर पल ईश्वर के होने का आभास होता है,अक्सर अकेले में शिशु जब हँसते है,उन्हें साक्षात् परमेश्वर दीखते है,और ईश्वर की कृपा और उनका हाथ सदैव उस शिशु पर बना होता है।
मगर बड़े हो कर जब वो शिशु बुरी आदतों को अपनाना शुरू करने लगता है,बुरे व्यवहार,बुरे विचारो से दिन रात घिरा रहता है,तो ईश्वर की छत्रछाया,कृपा और आशीर्वाद वो अपनी भूल से खो देता है। क्योकि जहां सद्गुण,सद्भावना नहीं वहां ईश्वर की अनुकम्पा नहीं।
यदि तुम बड़े पद को प्राप्त भी कर लेते हो मगर तुम्हारे भीतर सद्गुण और सद्भावना का वास नहीं तो तुम्हारा वो बड़ा पद किसी काम का नहीं। यदि तुम किसी का भला नहीं कर सकते तो किसी का बुरा करने का भी तुम्हे कोई हक नहीं। क्या कमाया तुमने चंद पैसे,दौलत ये अपार धन फिर भी लोभ तुम्हारे मन से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहा,तुम सबको खुद से छोटा समझते हो यकीन मानो तुम अपने जीवन की असल कमाई गवा चुके हो।
क्योकि ये धन और पैसा तुम्हारे जीवन की असल कमाई नहीं, क्योकि आज तक तुमने उसे कमाया ही नहीं, जिस पैसे और धन पर तुम अहंकार और गुरुर कर रहे हो वो पैसा और धन तो एक ना एक दिन खर्च हो जाएगा।
मगर यदि तुमने असल धन कमाया होता तो शायद भविष्य में तुम्हे स्वयं पर फक्र महसूस होता,वो अहम और असल धन है अपने दिल में सभी के लिए परोपकार, सद्गुण, सद्भावना जैसे विचार,जिसके दम पर तुम सबका कल्याण करने की सोचते किसी का भूल कर भी अपमान करने की भावना अपने मन में ना लाते क्योकि दुसरो के उपकार और सबके प्रति अच्छे विचार ही मनुष्य के दिल में सद्भावना को जन्म देता है जिससे मनुष्य आजीवन अपने पुण्यकर्मो से सबका भला करता है,ऐसे व्यक्ति का पुण्य जीते जी तथा मरने के बाद भी नष्ट नहीं होता।
सद्बुद्धि से ही मनुष्य के भीतर सद्भावना का जन्म होता है, इसलिए अपने दिमाग में कोई बुरे विचार ना आने दे अन्यथा ये आपके जीवन के खुशियों में बाधक बन सकता सदैव अच्छे विचारो का चुनाव कर जीवन में आगे बढ़ते जाए आपके प्रत्येक समस्याओ का हल आपको स्वतः ही मिल जाएगा जब आपके भीतर सद्बुद्धि और सद्भावना समा जाएगा।
Whatever you earned, you lost it in a moment, because of one mistake you lost your respect too.
Today I am going to talk about those who earn a lot of wealth, name and fame in their life but in the pride of their money they make the mistake of considering themselves as God. No matter how much wealth such people have, their greed keeps on increasing, in this greed they forget their humanity and one day when they start losing everything, they automatically start remembering their every mistake and crime, because this is the game of time, everyone's time comes one day or the other, then the one who has sown the seed, he reaps the same crop, if you sowed acacia then how will you get mangoes? That is, the one whose deeds are right is the one who gets the fruits, the one whose deeds are bad, he cannot get anything except thorns and poison.
No one becomes poor or rich by money, it is the fault of humans that they look at a rich person with respect and look at a poor and helpless person with contempt and hatred. If I say that your thoughts and behavior make you rich or poor, will you believe it?
Some of you will not believe, because those who are proud of their money, their feet are not on the ground, they think themselves to be the best and greatest, and consider everyone else to be inferior to them, if I show them the mirror of truth today, then everyone will believe in that unshakable truth, the truth of which they are unaware till now.
When a child is born, why is he considered to be a form of God? Does anyone have the answer to this?
Let me tell you, when a child is growing in the womb of the mother, he does not know what is right and wrong? What is good and bad? When that innocent child comes into this world after birth, as he grows up, he molds himself according to the environment around him. He starts adopting the habits he sees in his home environment. He behaves with everyone according to the values he receives from his elders and parents. If a child grows up in a bad and idealless family since childhood, then the same bad behavior and habits are seen in that child too. The way he behaves with his family members, he starts behaving with everyone in the same way. That is why it is said that a small newborn child is a form of God, who is unfamiliar with all bad thoughts and behavior.
My talk does not end here, there is still discussion on this topic, as I said, how and why a child is called God's form, you must have understood this very well, now listen carefully to what I am going to say, if you also want to attain God's proximity like that innocent child, then you will have to learn to control your mind, your bad habits, bad thoughts, bad behavior.
Some time ago I said that a child is free from all defects, he is innocent, sincere and pure, this is the reason that the child feels the presence of God every moment, often when the child laughs alone, he sees God in person, and God's grace and His hand are always on that child.
But when that child grows up and starts adopting bad habits, is surrounded by bad behavior and bad thoughts day and night, then he loses God's protection, grace and blessings due to his mistake. Because where there is no virtue, goodwill, there is no mercy of God.
Even if you achieve a big position but you do not have virtue and goodwill within you, then that big position of yours is of no use. If you cannot do good to anyone, then you have no right to do harm to anyone. What have you earned, some money, wealth, this immense wealth, yet greed is not going out of your mind, you consider everyone inferior to you, believe me you have lost the real earnings of your life.
Because this wealth and money is not the real earning of your life, because till today you have not earned it, the money and money on which you are feeling proud and arrogant, that money and money will be spent one day or the other.
But if you had earned real money, then perhaps in future you would have felt proud of yourself, that important and real wealth is the thoughts like charity, virtue, goodwill for everyone in your heart, on the basis of which you think of doing welfare of all, do not bring the feeling of insulting anyone even by mistake in your mind because the favors of others and good thoughts towards all give birth to goodwill in the heart of man, due to which man does good to everyone with his virtuous deeds throughout his life, the virtue of such a person does not get destroyed during his life and even after death.
Good sense gives birth to goodwill in a human being, so do not let any bad thoughts enter your mind otherwise it can become an obstacle in the happiness of your life. Always choose good thoughts and move forward in life. You will automatically find the solution to all your problems when you have good sense and goodwill within you.
ReplyDeleteHumans should not discriminate between the rich and the poor, because those who discriminate are bound to incur the wrath of God, it is necessary for everyone to awaken goodwill within themselves. Very lovely article by you....👍
Thank you..
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