चोट जब तुम्हे लगती है, तो उस दर्द का एहसास सिर्फ तुम्हे हो सकता है, किसी दूसरे को नहीं भले ही लोग तुम्हे सहारा देने का प्रयास करे, तुम्हारी मदद करने की कोशिश करे मगर तुम्हारे दर्द को कोई भी कम नहीं कर सकता।
इस दुनिया में जब हम आते है, तो हमारे जन्म के बाद हमारे कई रिश्ते जुड़ जाते है, जैसे माता पिता,भाई बहन,दादा दादी और भी कई रिश्ते नाते।जैसे-जैसे हम बड़े होने लगते है हमारे माता पिता हमे कई सीख और ज्ञान हमे प्रदान करते है, उचित संस्कारो का हमे उपदेश देते है, हम उनके द्वारा दिए गए उपदेश और ज्ञान का पालन करना शुरू कर देते है।
जब हम अपनी युवा अवस्था में पहुंच जाते है तो हमे सही और गलत की परख स्वतः ही होने लगती है, हम पहले से काफी समझदार होने लगते है। क्योकि उचित शिक्षा को ग्रहण करने के पश्चात भी यदि तुम्हारे भीतर ज्ञान की ज्योति का उदय यदि नहीं हुआ तो ये समझ लेना तुमने अपनी शिक्षा के साथ पक्षपात किया है अर्थात तुमने अपनी शिक्षा को दिल से ग्रहण नहीं किया। तभी बड़े हो कर भी तुम्हारे अंदर सही और गलत की परख नहीं।
आज कल के युवा बहुत जल्दी अपना आपा खो देते है, गुस्से में आ कर कोई भी निर्णय ले लेते है, जिससे उनका पूरा भविष्य और पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है, बाद में जब उन्हें अपनी भूल का एहसास होता है तो वो अपने किए पर खुद पछताते है, आखिर क्यों मैंने ऐसे वचन कहे ? आखिर क्यों मैंने ऐसा निर्णय किया ? यदि मैं अपने आपे से बाहर नहीं गया होता तो आज ऐसी परिस्थिति देखने को नहीं मिलती।
शब्द यदि मीठे और मधुर हो तो वो शब्द अमृत समान बन जाता है,शब्द यदि तीखे,कठोर और तीव्र हो तो वो शब्द एक भीषण तीर के समान घायल करने की ताकत रखता है जिसका सीधा असर व्यक्ति के दिल पर होता है, जो हमारे दिल को आघात करता है, जिसे हम सहन नहीं कर पाते और चाहे कोई कितना भी अजीज हो खास हो हमारा अपना हो हम उससे दूर होने लगते है।
इसलिए जो बोले सोच समझ कर बोले, और ऐसा बोले जिसे सुनने के बाद कोई आपकी शिक्षा पर आपके ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह ना लगाए।
* यदि वक्तुमिच्छसि तर्हि सद्वचनं वदसि, कठोरवचनं मा वदसि, शिक्षणेन पुस्तकपठनेन च किं लभ्यते, यदा त्वं सद्वचनं ज्ञात्वा वदसि।
अर्थात ,बोलना है तो अच्छे वचन बोले, ना बोले वचन कठोर,शिक्षा और पोथी पढ़ कर क्या मिला, जब तुमने सीखे ना अच्छे वचन और बोल।
भगवान ने तुम सबको इंसान बनाया, तुम सब एक इंसान हो तुम्हारे पास एक दिल है, तुम कैसे किसी दूसरे को हानि या कष्ट पहुंचा सकते हो ? क्या तुमने कभी अपने दिल से पूछा है कि क्या किसी दूसरे को कष्ट पहुंचा कर तुम्हारे दिल को आराम मिलता है या तुम्हारे दिल को भी क्षति पहुंचती है ? यदि दूसरे को कष्ट पहुंचा कर तुम्हे आनंद मिलता है तो ये समझ लेना तुम बस नाम के लिए इंसान हो, तुम्हारे अंदर की इंसानियत मर चुकी है, वो दिन दूर नहीं जब तुम्हे खुद के द्वारा किए गए प्रत्येक भूल का पश्चाताप होगा, जो तुमने दूसरो के साथ किया वही लौट कर तुम्हे कष्ट पहुंचाएगा।
मान और सम्मान भी दिलाते है शब्द,अपमान की वजह भी बनते है शब्द, कसूर शब्दों का नहीं, कसूर है वक्ता का, जिसे कब,कहां ,किस शब्दों का प्रयोग करना है इसका बोध ही नहीं।
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SNEHA AMROHI- ( From- India )
When you get hurt, only you can feel that pain, no one else can, even if people try to support you, try to help you, but no one can reduce your pain.
When we come to this world, after our birth, we get many relationships like parents, siblings, grandparents and many other relationships. As we grow up, our parents give us many lessons and knowledge, they teach us proper values, we start following the advice and knowledge given by them.
When we reach our youth, we automatically start judging what is right and what is wrong, we start becoming much wiser than before. Because even after receiving proper education, if the light of knowledge has not risen within you, then understand that you have been partial with your education, that is, you have not received your education from the heart. That is why even after growing up, you do not have the ability to judge what is right and what is wrong.
Today's youth lose their temper very quickly, they take any decision in anger, which ruins their entire future and life, later when they realize their mistake, they regret their actions, why did I say such words? Why did I take such a decision? If I had not lost my temper, then we would not have seen such a situation today.
If the words are sweet and melodious then they become like nectar, if the words are sharp, harsh and intense then they have the power to injure like a fierce arrow which has a direct impact on the heart of the person, which hurts our heart, which we are unable to bear and no matter how dear or special someone is to us, we start moving away from them.
Therefore, whatever you say, say it after thinking carefully and say it in such a way that after listening to it, no one questions your education or knowledge.
* If you want to speak then speak good words, don't speak harsh words; what did you get by education and reading books, when you did not learn good words and speech.
If people think that the pain they cause to others, if someone tries to cause the same pain to them then what will happen to their heart? If everyone starts thinking like this then our world will return to being a beautiful world.
I wish no one becomes the reason for someone's pain, I wish people use their words appropriately, I wish no one in this world is bad in anyone's eyes even after being good.
God made you all human beings, you all are human beings and you have a heart, how can you harm or hurt someone else? Have you ever asked your heart whether hurting someone else gives you peace of mind or does it hurt your heart too? If you get pleasure by hurting someone else then understand that you are a human being only in name, the humanity inside you is dead, the day is not far when you will repent for every mistake you have done, whatever you did to others will come back and hurt you.
Words bring respect and honour, they also become the reason for insult, it is not the fault of the words but the fault of the speaker who does not know when, where and which words to use.
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SNEHA AMROHI- ( From- India )
ReplyDeleteYou are right, words cause more harm to a person than arrows, that is why we should use sweet words only. Very nice article. 👍😊
Thank you...
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