कौन कहलाता है विद्वान ? Who is called a Scholar?

Snehajeet Amrohi
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इस दुनिया में लोग कहते है कि जिसे शास्त्रों का ज्ञान है,जिसे सभी वेद,ग्रन्थ,पुराणों का ज्ञान है,वही विद्वान है। 

मगर ईश्वर के दृष्टिकोण से विद्वान कौन कहलाता है ? क्या आप सभी मनुष्यो को पता है ?

मैं आज अपने इस लेख में इसी विषय पर चर्चा करूंगी। ऐसे तो आप में से कुछ मनुष्य ने रामायण, भागवत गीता, महापुराण, ग्रन्थ और शास्त्र का अध्यन किया होगा, मगर किसी धार्मिक पुस्तक,शास्त्र को पढ़ने मात्र से हर व्यक्ति आध्यात्मिक और धार्मिक प्रवृति का नहीं हो जाता,क्योकि किसी विषय को रटना और पढ़ना तभी सार्थक सिद्ध होता है जब उस विषय को अपने दिमाग में याद रखा जाए और विषय से ज्ञान प्राप्त किया जाए अन्यथा रटने और पढ़ने से क्या लाभ ?

अपने जीवन में एक बात अवश्य याद रखना कभी अपने अर्जित ज्ञान पर भूल कर भी अभिमान ना करना,क्योकि एक अभिमानी का ज्ञान से कोई वास्ता नहीं। यदि तुम्हारे ज्ञान से किसी का अहित हो रहा है तो ये समझ लेना तुम्हारा ज्ञान एक अभिशाप बन रहा है,क्योकि ज्ञान तभी फलित होता है जब अपने ज्ञान से हम दूसरो की सहायता करते है,अपने अर्जित ज्ञान को दूसरो के साथ बांटते है। 

वरना शास्त्रों का ज्ञान,वेदों का ज्ञान,ग्रंथों का ज्ञान सब व्यर्थ है जब तक तुम्हे अपने उचित कर्तव्यों की अनुभूति नहीं होती। 

विद्वान वो कहलाता है,जिसे अपने ज्ञान पर कोई अभिमान नहीं होता, विद्वान वो कहलाता है जो दूसरो के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझ कर उसकी मदद के लिए तत्पर रहता है, विद्वान वो कहलाता है जो किसी से द्वेष भाव नहीं रखता, विद्वान वो कहलाता है जिसे धन,दौलत,पैसा मोहित नहीं करता, विद्वान वो कहलाता है जो खुद को सबसे श्रेष्ठ नहीं समझता। जिसकी नजरो में अमीर,गरीब सब एक समान होते है,जो किसी में भेदभाव नहीं रखता, जो अन्याय पर रोक लगाता,जो न्याय के लिए आवाज उठाता, जो सदैव अपने उचित धर्म और कर्म का पालन करता है,वही विद्वान कहलाने का ख्याति पाता है। 

आप खुद देखो कितने ऐसे पंडित,पुरोहित है जो धर्म और ईश्वर  के नाम पर लोगो को सही दिशा से भ्र्ष्ट करने का प्रयास कर रहे है। क्या फायदा शास्त्रों के ज्ञान का,अनुष्ठान और पूजा पाठ का ?

यदि तुम किसी को सही दिशा नहीं दिखा सकते तो तुम्हे कोई हक नहीं दूसरो को दिशा से भ्र्ष्ट करने का, जिस पवित्र ज्ञान को तुमने अर्जित किया तुम उसी ज्ञान का व्यापार कर रहे हो, यदि ऐसा है तो ये मान लेना तुम पवित्र ज्ञान से अनजान हो, तुम बस नाम के विद्वान हो,यदि तुम्हारी विद्या तुम्हे उचित और अनुचित क्या है इसका बोध नहीं कराती तो ये मान लेना तुमने विद्या को उचित प्रकार ग्रहण किया ही नहीं। 

चाहे कितनी बड़ी डिग्रियां हासिल कर लो,शास्त्रों के ज्ञाता बन जाओ मगर यदि तुम्हारे भीतर स्वार्थ, अभिमान,लोभ, ईर्ष्या,क्रोध, प्रतिस्पर्धा है तो मान लेना,तुम असल ज्ञान से कोशो दूर हो। 

* ज्ञानं दिव्यत्वस्य प्रतीकं ज्ञानं प्रकाशं यत् अस्माकं अन्तः अज्ञानस्य अन्धकारं दूरीकृत्य ज्ञानप्रकाशेन अस्मान् प्रकाशयति।

अर्थात, ज्ञान दिव्यता का प्रतीक है,ज्ञान एक ऐसा प्रकाश है जो हमारे भीतर अज्ञान के अंधकार को दूर करता है और ज्ञान के प्रकाश से हमे प्रकाशित करता है। 

विद्वान होने की उपाधि एकमात्र पुस्तक के ज्ञान से,वेदों,शास्त्रो और ग्रंथों के अध्यन से प्राप्त नहीं होती बल्कि दिल,मन और आत्मा के शुद्धिकरण से प्राप्त होती है, तीर्थ धाम,गंगा स्नान से तन और मन पवित्र नहीं होता, ये सब तो तुम अपने मन के तसल्ली के लिए करते हो, यदि सभी दोषो से,बुरे विकारो से तुम स्वयं को मुक्त कर लोगे तो तुम्हे तीर्थ और गंगा स्नान की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। 



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Sneha Amrohi - ( From- India )





In this world people say that one who has knowledge of scriptures, one who has knowledge of all Vedas, scriptures, Puranas, he is a scholar.

But who is called a scholar from God's point of view? Do all of you humans know this?

I will discuss this topic in my article today.Some of you may have studied Ramayan, Bhagavad Gita, Mahapuran, Granthas and scriptures, but by merely reading a religious book or scripture, every person does not become spiritual and religious, because memorizing and studying a subject is meaningful only when that subject is remembered in your mind and knowledge is gained from the subject, otherwise what is the benefit of memorizing and studying?

One thing to remember in your life is never to be proud of your acquired knowledge, because an arrogant person has nothing to do with knowledge. If your knowledge is harming someone, then understand that your knowledge is becoming a curse, because knowledge is fruitful only when we help others with our knowledge, share our acquired knowledge with others.

Otherwise the knowledge of scriptures, knowledge of Vedas, knowledge of texts are all useless until you realize your proper duties.

A learned person is one who is not proud of his knowledge, a learned person is one who considers the pain of others as his own and is always ready to help them, a learned person is one who does not bear any animosity towards anyone, a learned person is one who is not tempted by wealth, money, a learned person is one who does not consider himself superior to others. One in whose eyes the rich and the poor are all the same, one who does not discriminate between anyone, one who puts a stop to injustice, one who raises voice for justice, one who always follows his proper religion and deeds, he gets the fame of being called a learned person.

You see for yourself how many such Pandits and priests are there who are trying to mislead people from the right path in the name of religion and God. What is the use of the knowledge of scriptures, rituals and worship?

If you cannot show someone the right direction then you have no right to mislead others, you are trading on the sacred knowledge that you have acquired, if this is so then you should accept that you are ignorant of sacred knowledge, you are a scholar only in name, if your knowledge does not make you understand what is right and what is wrong then you should accept that you have not acquired the knowledge in the right way.

No matter how many big degrees you acquire, how many scriptures you become an expert in, but if there is selfishness, pride, greed, jealousy, anger, competition in you, then accept that you are far away from real knowledge.

* Knowledge is a symbol of divinity, knowledge is a light which removes the darkness of ignorance within us and illuminates us with the light of knowledge.

The Title of being a scholar is not attained by mere knowledge of books, study of Vedas, scriptures and texts but by purification of heart, mind and soul. Body and mind are not purified by visiting holy places and bathing in Ganga. You do all this for the satisfaction of your mind. If you free yourself from all the faults and bad habits, then you will not even need pilgrimages and bathing in Ganga.



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Sneha Amrohi - ( From- India )

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  1. You have explained very well in your article, I completely agree with your thoughts. In fact, a person is called a scholar by his good conduct, behavior and qualities, not just by bookish knowledge. Very nice article by you.👍

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